जयपुर जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Jaipur District GK in Hindi / Jaipur Jila Darshan
जयपुर जिले का कुल क्षेत्रफल – 11,143 वर्ग किलोमीटर
नगरीय क्षेत्रफल – 737.59 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 10,405.41 वर्ग किलोमीटर है।
जयपुर जिले की मानचित्र स्थिति – 26°23′ से 27°51′ उत्तरी अक्षांश तथा 74°55′ से 76°50′ पूर्वी देशान्तर है।
जयपुर जिले में कुल वनक्षेत्र – 944.52 वर्ग किलोमीटर
जयपुर जिले में कुल विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 19 है, जो निम्न है –
1. सांगानेर, 2. मालवीय नगर, 3. विद्याधर नगर, 4. शाहपुरा, 5. किशनपोल, 6. चाकसू, 7. विराटनगर, 8. फुलेरा, 9. झोटवाड़ा, 10. आदर्श नगर, 11. सिविल लाइंस, 12. दूदू, 13. आमेर, 14. बगरु, 15. जमवारामगढ़, 16. हवामहल, 17. चौमू, 18. बस्सी तथा 19. कोटपूतली
- उपखण्डों की संख्या – 13
- तहसीलों की संख्या – 13
- उपतहसीलों की संख्या – 5
- ग्राम पंचायतों की संख्या – 488
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जयपुर जिले की जनसंख्या के आंकड़े
- कुल जनसंख्या—66,26,178
- पुरुष—34,68,507
- स्त्री—31,57,671
- दशकीय वृद्धि दर—26.2%
- लिंगानुपात—910
- जनसंख्या घनत्व—595
- साक्षरता दर—75.5%
- पुरुष साक्षरता—86.1%
- महिला साक्षरता—64.0%
जयपुर जिले में कुल पशुधन – 28,03,997 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
जयपुर जिले में कुल पशु घनत्व – 252 (LIVESTOCK DENSITY(PER SQ. KM.))
जयपुर जिले का ऐतिहासिक विवरण –
आमेर की स्थापना 1137 में दूल्हेराय ने की थी। दूल्हेराय को कछवाहों का आदिपुरुष कहते हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार दूल्हेराय 967 में राजा बना था। काकिल देव (1207), दूल्हेराय का वंशज था। काकिल देव ने आमेर के मीणों व भट्टों को हराकर, आमेर को राजधानी बनाया।
आमेर नरेश सवाई जयसिंह ने 18 नवम्बर, 1727 को जय नगर के नाम से जयपुर की स्थापना की।
जयपुर का वास्तुकार बंगाल निवासी विद्याधर भट्टाचार्य था।
जयपुर, राजस्थान का नगर है, जिसको नक्शों के आधार पर बसाया गया।
जयपुर की नींव जगन्नाथ पुण्डरीक रत्नाकर ने रखी थी।
जयपुर का आधुनिक निर्माता मिर्जा इस्माइल को कहते है।
राजस्थान एकीकरण के चतुर्थ चरण 30 मार्च 1949 में ‘जयपुर’ को सम्मिलित किया गया एवं तब से ‘जयपुर’ ही राजस्थान की राजधानी है।
जयपुर जिलें की नदियाँ एवं जलाशय –
बाणगंगा नदी— बाणगंगा नदी को अर्जुन की गंगा तथा ताला नदी भी कहते है। बाणगंगा नदी का उद्गम बैराठ की पहाड़ियाँ, जयपुर से होता है। बांणगंगा नदी राजस्थान के तीन जिलों में बहती है – जयपुर, दौसा और भरतपुर। बाणगंगा नदी की कुल लम्बाई 380 किलोमीटर है, जिसमें से राजस्थान में 240 किलोमीटर है। बाणगंगा नदी राजस्थान में बहने के पश्चात उत्तर प्रदेश के आगरा में फतेहाबाद के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। बाणगंगा नदी की प्रमुख सहायक नदियां सुरी, सांवन, पलासन आदि नदियां है। जयपुर में पेयजल के लिए बाणगंगा नदी पर जमुवारामगढ़ बांध बना हुआ है।
रामगढ़ बाँध— बाणगंगा नदी पर स्थित बांध से जयपुर को पेयजल की आपूर्ति की जाती थी, परन्तु वर्तमान में यह सूखा पड़ा है।
बांड़ी नदी— इस नदी का उद्गम जयपुर जिले में चाकसू (समारोह व आमलोद के पहाड़ों) के पास से होता है। बांडी नदी चतरपुरा के पास मांशी नदी में मिल जाती है।
ढूंढ नदी— इस नदी का उद्गम अचरोल, जयपुर से होता है।
साम्भर झील—यह झील राजस्थान के तीन जिलों जयपुर, नागौर व अजमेर की सीमा पर जयपुर शहर से 65 किलोमीटर दूर स्थित है। सांभर झील की पूर्व से पश्चिम की लंबाई 31 किलोमीटर व उत्तर से दक्षिण की चौड़ाई 13 किलोमीटर है। सांभर झील राजस्थान की सबसे बड़ी अंत:प्रवाह की झील है। राजस्थान की खारे पानी की सबसे बड़ी व प्राकृतिक झील है। एशिया का सबसे बड़ा अन्त: स्थलीय नमक उत्पादन केन्द्र है।
सांभर झील से भारत के कुल नमक उत्पादन का लगभग 8 प्रतिशत नमक उत्पादित होता है। इस झील के किनारे सांभर साल्ट लिमिटेड़ की स्थापना 1964 ई. में केन्द्र सरकार द्वारा की गई थी।
सांभर झील के किनारे सोड़ियम सल्फेट संयंत्र स्थापित किया गया है। हिंदुस्तान नमक कंपनी की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा नमक उत्पादन के लिए की गई है।
बिजौलिया शिलालेख के अनुसार, सांभर झील का निर्माण वासुदेव चौहान ने करवाया। सांभर झील पर पर्यटन विकास हेतु 1990 में रामसर साइट नाम से पर्यटन स्थल विकसित किया गया है। गुजरात का राज्य पक्षी ‘राजहंस’ व ‘कुरजां’ यहाँ पर आते है।
सांभर झील में आन्तरिक प्रवाह की नदियाँ रूपनगढ़, मंथा, खण्डेला आदि गिरती है।
जयपुर जिलें के वन्य जीव अभयारण –
जमवारामगढ़—इसकी स्थापना 31 मई, 1982 ई.को की गई। यह 300 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत है। यह अभयारण ‘जयपुर के पुराने शिकारगाह’ के लिए प्रसिद्ध है। नीलगाय व लंगूरों के लिए प्रसिद्ध। यहां मुख्यत: धोक वन पाए जाते है।
नाहरगढ़ जैविक अभयारण्य—राजस्थान का एकमात्र जैविक पार्क नाहरगढ़, जयपुर में है। इसकी स्थापना 22 सितम्बर, 1980 में की गई। यह अभयारण्य नाहरगढ़ व जयगढ़ किले के आस-पास 52.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। यह अभयारण्य बघेरा, सांभर, हिरण, जंगली सूअर, तेंदुआ, चीते, काला भालू, चीतल एवं चिंकारा के लिए प्रसिद्ध है।
नाहरगढ़ अभयारण-यहां बीयर रेसक्यु सेंटर स्थापित किया गया है। इसे ही जैविक उद्यान के रूप में विकसित किया गया है।
संजय उद्यान मृगवन—यह शाहपुरा, जयपुर में स्थित है। इसकी स्थापना-1986 में हुई। यह 10 हेक्टेयर में फैला है। इस मृगवन को ग्रामीण चेतना केन्द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। । यहां नील गाय, चीतल, चिंकारा आदि जंतु पाये जाते है।
अशोक विहार मृगवन—यह जयपुर के मध्य में 12.2 हेक्टेयर क्षेत्र में विकसित किया गया है। इसकी स्थापना भी 1986 ई. में की गई।
जयपुर जन्तुआलय— जयपुर जू की स्थापना-1876 ई. में महाराजा सवाई रामसिंह द्वारा, रामनिवास बाग के मध्य की गई थी। यह राजस्थान का पहला व सबसे बड़ा जन्तुआलय है। यह जन्तुआलय मगरमच्छ व घडिय़ालों के कृत्रिम प्रजनन केन्द्र के रूप में विख्यात है। यहां मगरमच्छ के एक जोड़े ने 346 बच्चों को जन्म दिया, जो एक विश्व रिकॉर्ड है।
जयपुर जिले के खनिज संसाधन –
लोहा-जयपुर में खनिजों में सर्वाधिक लोह अयस्क का खनन होता है। लोहे अयस्क की खानें मोरीजा बानोला क्षेत्र, जयपुर में स्थित है।
डोलोमाइट-राजस्थान में जयपुर जिलें का प्रथम स्थान (सर्वाधिक-23% खनन) है। डोलोमाइट का उपयोग रासायनिक उर्वरक में एवं चूना बनाने में किया जाता है।
घीया पत्थर- जयपुर में सीसगढ़ व ख्वाजा गदी मोरा प्रमुख खानें है। घीया पत्थर का उपयोग खिलौने, टेलकम पाउडर, पेस्ट, मूर्तियाँ, रंगीन पेंसिल, कीटनाशक पदार्थ बनाने में किया जाता है।
केल्साइट—तासकोला, शखुन व बरना की चौकी।
चूनापत्थर-डाबला तथा नारायणा से निकाला जाता है।
रॉक फॉस्फेट- इसका उपयोग मिट्टी की लवणीयता की समस्या को कम करने के लिए किया जाता है। रॉक फॉस्फेट का उपयोग रासायनिक खाद (सुपर फास्फेट) बनाने में किया जाता है। जयपुर में इसकी खान अचरोल में है।
सफेद संगमरमर-आंधी, रायसला, निमला, टोड़ का बास।
काला संगमरमर-भैंसलाना, जयपुर से निकाला जाता है। भैंसलाना, काले संगमरमर के लिए प्रसिद्ध है।
राजस्थान की प्रमुख औद्योगिक संस्थाऐं/निगम –
राजस्थान लघु उद्योग निगम लि. (RAJSICO)-3 जून, 1961 में स्थापित। इसे सार्वजनिक कंपनी का दर्जा 1 फरवरी, 1975 ई. को प्रदान किया गया था।
राजस्थान राज्य वित्त निगम (RFC)-इसकी स्थापना 17 जनवरी, 1955 में की गई।
राजस्थान कंसल्टेंसी ऑर्गनाइजेशन (RAJCON)– इसकी स्थापना 1978 में की गई।
उद्योग सवंर्द्धन ब्यूरो—जयपुर-1991
उद्यम प्रोत्साहन संस्थान—जयपुर-अक्टूबर-1995
आर्थिक विकास बोर्ड—जयपुर-अगस्त 1999 (इसका अध्यक्ष-मुख्यमंत्री होता है।)
आधारभूत ढाँचा विकास व विनियोग प्रोत्साहन बोर्ड—जयपुर, मार्च 2000।
राजस्थान राज्य सहकारी बुनकर संघ—जयपुर-26 अगस्त, 1957।
बुनकर सेवा केन्द्र—जयपुर-1978 ई.।
भारतीय शिल्प व डिजाइन संस्थान—20 अप्रैल 1995, जयपुर।
राजस्थान स्टेट वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन—जयपुर-30 दिसम्बर, 1957।
सांभर साल्ट लिमिटेड—केन्द्र व राज्य सरकार के क्रमश: 60 : 40 के योगदान। इसकी स्थापना 30 सितम्बर, 1964 को की गई।
राजस्थान खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड – इसकी स्थापना अप्रेल, 1955 ई. में की गई थी।
जयपुर के उद्योग-धंधे –
- राजस्थान इलेक्ट्रोनिक्स एण्ड इन्स्ट्रूमेंटेशन लिमिटेड—कनकपुरा-जयपुर।
- पानी एवम् बिजली के मीटर जयपुर में बनते है।
- लाख की चूडिय़ाँ, कोफ्तगिरी व तहनिंशा का काम, बगरू प्रिंट, हाथी दाँत कार्य, पाव रजाई जयपुर की प्रसिद्ध है।
- सर्वाधिक पीतल के बर्तन जयपुर में बनते है।
- सर्वाधिक पंजीकृत फैक्ट्रीयाँ जयपुर में है।
साँगानेर हवाई अड्डा—स्थापना-फरवरी, 2006, राज्य का प्रथम एवम् देश का 14 वाँ अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा।
राजस्थान का प्रथम ड्राइविंग ट्रैक-जगतपुरा, जयपुर
जयपुर मेट्रो रेल परियोजना—यह भारत का प्रथम थ्रीडेक टै्रक है जहाँ जमीन से ऊपर मेट्रो टे्रन गुजरती हुई होगी। इसका क्रियान्वन दो चरणों में हो रहा है। प्रथम चरण का शिलान्यास 24 फरवरी, 2011 को किया गया। द्वितीय चरण का कार्य अभी बाकी है। इसका प्रथम चरण मानसरोवर से चाँदपोल तक शुरु किया गया।
जयपुर के ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थल –
जयगढ़ दुर्ग – जयपुर को चिल्ह का टीला तथा संकटमोचक दुर्ग के उपनाम से भी जाना जाता है।
इसका वास्तुकार विद्याधर था, जो जयपुर शहर का वास्तुकार भी था। जयगढ़ का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा चिल्ह का टीला नामक पहाड़ी पर करवाया गया। इस दुर्ग का नाम मिर्जाराजा जयसिंह के नाम पर ही जयगढ़ पड़ा। राजा मानसिंह के समय इस दुर्ग को ‘चिल्ह का टीला’ कहा जाता था। इस दुर्ग में राजस्थान का एकमात्र तोप ढ़ालने का कारखाना मिर्जा राजा जयसिंह ने स्थापित करवाया। जिसमें सवाई जयसिंह ने जयबाण/रणबंका तोप बनाई जो एशिया की सबसे बड़ी तोप थी। इस तोप को एक बार चलाया गया जिसका गोला चाकसू में गिरा जहाँ पर गोला गिरा वहाँ पर गोलेराव तालाब का निर्माण हो गया। इसकी गूंज इतनी तेज थी कि पशु-पक्षियों व महिलाओं के गर्भपात हो गये। इस दुर्ग में स्थित लेथ मशीन वर्तमान में अच्छी स्थिति में है, यह बैलों से चलती थी। जयगढ़ दुर्ग के प्रमुख दरवाजों में डूँगर द्वार, अवनि द्वार तथा भैंरु द्वार है। जयगढ़ दुर्ग में एक लघु दुर्ग स्थित है, जिसे विजयगढ़ी कहा जाता है, जो एक शस्त्रागार है। जयगढ़ दुर्ग में मध्यकालीन शस्त्रास्त्रों का विशाल संग्रहालय स्थित है। जयगढ़ के पास सात मंजिला प्रकाश स्तंभ स्थित है, जिसे दिवाबुर्ज कहते है, यह सबसे ऊँचा बुर्ज है। विजयगढ़ी के पास ही तिलक की तिबारी स्थित है, जिसके चौक में जयबाण तोप रखी है।
जयगढ़ दुर्ग के प्रमुख महलों में खिलबति निवास महल तथा सुमर निवास महल है। इस दुर्ग पर शत्रु ने कभी भी आक्रमण नहीं किया।
जयगढ़ दुर्ग में पानी के टांके का निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया था, जहां खजाना सुरक्षित रहता था। ऐसा कहा जाता है कि कच्छवाहा वंश का दफीना (राजकोष)/धन-दौलत इस दुर्ग में रखा हुआ था, जिसकी खुदाई एवं खोज 1975 में इंदिरा गाँधी ने करवाई।
नाहरगढ़ दुर्ग–इसका उपनाम-सुदर्शन गढ़ (मूल नाम), जयपुर का मुकुट, मीठड़ी का किला, जयपुर ध्वजगढ़ आदि है। इस दुर्ग के निर्माण में नाहर नमक व्यक्ति की बलि दी गई थी, ऐसा भी माना जाता है कि यहां नाहर सिंह दिन के कार्य को रात में ध्वस्त कर देता था। उसी के नाम पर इस दुर्ग का नाम, नाहरगढ़ पड़ा। इसका निर्माण-जयसिंह द्वारा 1734 ई. मराठों से बचने के लिए किया था। 1868 में सवाई रामसिंह ने इसे वर्तमान स्वरूप प्रदान किया। इस दुर्ग में माधोसिंह ने 9 प्रेयसियों/पासवानों के लिए विक्टोरिया शैली में एक जैसे 9 महलों का निर्माण करवाया।
चौमू का किला – उपनाम-चौमुहागढ़/रघुनाथ गढ़/धाराधारगढ़, चौमुँहा किला आदि। इस किले का निर्माण 1595-97 ई. में ठाकुर कर्णसिंह लने करवाया। इस दुर्ग के पास सामोद हनुमानजी का मन्दिर है। इसकी प्रतिमा का एक पैर पहाड़ी में धँसा है।
माधोराजपुर का किला – फागी, जयपुर-इस दुर्ग के बीचों बीच भौमिया जी का स्थल है। इस किले को जयपुर महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम ने मराठों पर विजयोपरांत बनवाया था। इस दुर्ग में सवाई जयसिंह की धाय रूपा बढ़ारण को बंदी बनाकर रखा गया।
मोरिजा का किला-यह गोविन्दगढ़, जयपुर में स्थित है।
गैटोर की छतरियाँ—जयपुर शासकों के स्मारक। सबसे प्रसिद्ध छतरी-जयसिंह-ढ्ढढ्ढ की।
जंतर-मंतर—इस वेधशाला का निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा 1718 ई. में करवाया। यह पाँचों वेधशालाओं में सबसे बड़ी है। जयसिंह द्वारा निर्मित अन्य चार वैद्यशालाऐं है -दिल्ली, मथुरा, उज्जैन तथा वाराणसी।
हवामहल—सवाई प्रतापसिंह द्वारा 1799 ई. में इसका निर्माण करवाया गया। यह पाँच मंजिला इमारत है, जिसमें 953 खिड़कियाँ व 365 झरोखे है। इसका वास्तुकार लालचन्द था। इसकी पहली मंजिल शरद मंदिर, दूसरी-रतन मंदिर, तीसरी विचित्र मंदिर, चतुर्थ प्रकाश मंदिर एवम्-पाँचवी हवा मंदिर कहलाती हैं। पश्चिम से जान पर इसमें आनंद पोल व चंद्रपोल आता है। कर्नल जेम्स टॉड ने इसकी आकृति कृष्ण के मुकुट के समान बताई थी।
रामबाग पैलेस—इसका निर्माण रामसिंह द्वितीय ने करवाया।
चन्द्रमहल/सिटी पैलेस/राजमहल-इस सात मंजिला इमारत का निर्माण सवाई जयसिंह ने वास्तुकार विद्याधर की देखरेख में करवाया। विश्व के सबसे बड़े दो चाँदी के पात्र सिटी पैलेस में रखे हुए है।
जलमहल—मानसागर झील में सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया।
दीवान-ए-आम—सामान्य जनता से मिलने के लिए मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया।
दीवान-ए-खास—विशेष लोगों से मिलने के लिए इसका निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया।
शीश महल, यश मन्दिर महल, सुहाग महल, सुख मन्दिर महल जयपुर में स्थित है।
सरगासूली – इसके उपनाम ईशरलाट व जयस्तम्भ है। 1747 ई.में राजमहल का उत्तराधिकारी युद्ध ईश्वरी सिंह व माधोसिंह प्रथम के मध्य टोंक (राजमहल) में हुआ। इसमें ईश्वरी सिंह विजयी हुआ एवं अपनी विजय के उपलक्ष में त्रिपोलिया बाजार में ईशर लाट का निर्माण करवाया। यह इमारत 7 मंजिला है। 1750 ई. में मराठों के भय से ईश्वरी सिंह ने ईशरलाट से कूदकर आत्म हत्या कर ली।
अल्बर्ट हॉल — प्रिंस अल्बर्ट के भारत आगमन पर उसके स्वागत हेतु 1876 ई. में रामसिंह द्वितीय ने इसका निर्माण करवाया। इसका वास्तुकार-स्टीवन जैकफ था।
जयपुर में प्राचीन सभ्यता स्थल –
बैराठ सभ्यता – खोज-1937 में दयाराम साहनी द्वारा। राजस्थान में बौद्ध धर्म का सबसे प्राचीन केन्द्र बैराठ है। यह सभ्यता बाणगंगा नदी के समीप है। भाब्रू शिलालेख (अशोक का) यहीं से प्राप्त हुआ। अशोक का ब्राह्मी लिपी लिखित इस शिलालेख की खोज 1834 में कैप्टन बर्ट ने की। बैराठ की यात्रा चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी की थी। यहाँ पर महात्मा बुद्ध की प्रतिमा प्राप्त हुई जो भारत की प्रथम मानव ज्ञात प्रतिमा है।
जोधपुरा—हांथी दाँत के अवशेष।
किरोड़ोत—28 प्रकार की ताँबे की चूडियाँ।
जयपुर जिलें के मंदिर –
जमुवाय माता—उपनाम-अन्नपूर्णा-जमवारामगढ़ (जयपुर), जयपुर के कच्छवाहा राजवंश की कुलदेवी। इस माता की मूर्ति के पास गाय व बछड़े की प्रतिमा है।
ज्वाला माता—जोबनेर, खंगारौत राजपूतों की कुलदेवी, इसका मेला-नवरात्रों में लगता है।
नकटी माता— जयभवानीपुरा, जयपुर में प्रतिहारकालीन मंदिर है। मूल नाम-दुर्गा माता, इस माता की प्रतिमा की नाक चोरों ने काट ली इसलिए यह नकटी माता कहलाई। दुर्गा माता का प्रतीक चिन्ह-त्रिशूल व तलवार।
शाकम्भरी माता—सांभर के चौहानों की कुल देवी। इस मंदिर का निर्माण वासुदेव चौहान ने करवाया। यहाँ पर मेला भाद्रपद शुक्ल 8 को लगता है।
सांभर में स्थित देवयानी को सब तीर्थों की नानी कहा जाता है।
महामाई माता—रेनवाल की लोकदेवी।
शिला माता- शिला माता का मंदिर आमेर, (जयपुर) में स्थित है। कच्छवाहा राजवंश की आराध्य देवी, इस माता की मूर्ति को मानसिंह प्रथम जस्सोर (वर्तमान बांग्लादेश में) नामक स्थान से बंगाल के राजा केदार को हराकर 1602 में लाया। माता की प्रतिमा अष्टभुजी महिषासुर मर्दिनी के रूप में है। मूर्ति के ऊपरी हिस्से पर पंच देवों की प्रतिमा स्थापित है। शिला माता का मेला चैत्र व अश्विन के नवरात्रों में लगता है।
इसके बायीं ओर अष्टधातु हिंगलाज माता की मूर्ति है। शिला माता के ढाई प्याला शराब चढ़ती है।
शीतला माता-उपनाम-सैढ़ल माता, बास्यौड़ा, महामाई, बच्चों की संरक्षिका, चेचक व बोदरी की देवी।
शीतला माता का मंदिर शील की डूँगरी, चाकसू, जयपुर में है। मंदिर का निर्माण महाराजा माधोसिंह ने करवाया। इस माता का वाहन गधा व पुजारी-कुम्हार होता है। शीतला माता का प्रतीक चिन्ह-मिट्टी की कटोरियाँ (दीपक) होती है। राजस्थान की एकमात्र ऐसी देवी है, जिसकी खण्डित रूप में पूजा होती है। इस माता की बांझ स्त्रियां पूजा करती है। मेला-चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतलाष्टमी) को इस माता के खेजड़ी वृक्ष की पूजा की जाती है।
लक्ष्मीनारायण जी/बिड़ला मन्दिर-राजस्थान का एकमात्र मंदिर जो हिन्दु, मुस्लिम व ईसाई डिजाइन से बना है। यह एशिया का प्रथम वातानुकूलित मंदिर है।
कल्की मंदिर—निर्माण-ईश्वरी सिंह, भारत का एकमात्र कल्की मंदिर। इस मंदिर में संगमरमर से बना घोड़ा है जिसके खुर के नीचे एक गड्डा है।
गोविन्द देवजी का मंदिर- इसका निर्माण-1735 में सवाई जयसिंह ने करवाया। जयपुर के आराध्य देव। जयपुर के राजा गोविन्द देवजी को अपना शासक व स्वयं को उसका दिवान मानते थे। इस मन्दिर परिसर में स्थित सत्संग भवन विश्व में बिना खम्भों वाला सबसे बड़ा भवन है। इसका नाम ”गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड” में दर्ज है। इसको दर्शन हेतु इन्टरनेट पर जारी किया गया है।
जगत् शिरोमणि मन्दिर- निर्माण-मानसिंह की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगत की स्मृति में करवाया। इसमें श्री कृष्ण की प्रतिमा है। इसे ‘मीरां मन्दिर’ भी कहते है। इस मंदिर में श्रीकृष्ण की वही प्रतिमा है, जिसकी पूजा मीरां बाई करती थी।
मोती डूँगरी—यहाँ गणेश जी का सुप्रसिद्ध मन्दिर है जिसमें गणेश चतुर्थी को मेला भरता है।
राजराधेश्वर/सिद्धेश्वर शिव मंदिर— यह मन्दिर आम जनता के लिए केवल शिवरात्रि के दिन खुलता है। यह जयपुर के राजाओं का निजी मन्दिर है। निर्माण-रामसिंह द्वारा-1864 में ।
चूलगिरी का मन्दिर-जयपुर।
दादूदयाल—राजस्थान का कबीर, इनकी समाधि-नरैना/नारायण (जयपुर) में स्थित है। इस समाधि को दादूखोल कहा जाता है। इसके सत्संग स्थल को अलख दरीबा कहते है।
रज्जब जी की पीठ—सांगानेर, रज्जब जी जीवनभर दूल्हे के वेश में रहे थे।
गलता जी तीर्थ – यहाँ पर गालव नामक ऋषि ने तपस्या की थी। यहाँ पहाड़ी पर सूर्य मन्दिर है। गलता को मंकी वैली तथा राजस्थान की मिनी काशी या छोटी काशी भी कहते हैं।
जयपुर जिले की चित्रकला शैली –
आमेर/ढूँढ़ाड़ चित्रशैली—सर्वाधिक मुगल शैली से प्रभावित। प्रतापसिंह का काल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है, राजस्थान का प्रथम आदमकद् चित्र साहिबराम द्वारा ईश्वरी सिंह का बनाया गया।
राजस्थान में चित्रकला की आला-गीला (अरायशी) पद्धति की सर्वप्रथम शुरूआत ‘जयपुर’ में हुई।
श्वानों का चितेरा के रूप में प्रसिद्ध जगन्नाथ मथौडिय़ा जयपुर निवासी है। नीड़ का चितेरा—सौभाग्य मल गहलोत भी जयपुर निवासी है।
ब्ल्यू पॉटरी-नेवटा, (जयपुर) की प्रसिद्ध है—पद्मश्री कृपालसिंह शेखावत इसके प्रसिद्ध कलाकार हैं।
जयपुर में स्थित विभिन्न अकादमियां एवं संस्थाऐं —
- राजस्थान संगीत संस्थान—1950, जयपुर।
- राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी—1969, जयपुर।
- जयपुर कत्थक केन्द्र—1978, जयपुर।
- राजस्थान उर्दू अकादमी—जयपुर/ टोंक—1979
- राजस्थान सिंधी अकादमी—जयपुर—1979
- राजस्थान संस्कृत अकादमी—जयपुर—1980
- राजस्थान ललित कला अकादमी—जयपुर। 1957 में स्थापित।
जयपुर के प्रसिद्ध व्यक्तित्व –
रामसिंह-द्वितीय—प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन पर रामसिंह-द्वितीय ने जयपुर को गेरुं रंग से पुतवाया था। स्टेण्डरी ने अपनी पुस्तक ‘द रॉयल टाउन ऑफ इंडिया’ में गेरुं को अंग्रेजी में पिंक लिखा इसलिए जयपुर को गुलाबी नगरी कहते है लेकिन जयपुर का वास्तविक रंग गेरुंआ है।
हीरालाल शास्त्री—जन्म-24 नवम्बर, 1899 को जोबनेर (जयपुर) में हुआ। राजस्थान के प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री, इनका प्रसिद्ध गीत-प्रलय प्रतीक्षा नमो नम:, 1936 में जीवन कुटीर संस्थान की स्थापना निवाई, टोंक में की जो वर्तमान में वनस्थली विद्या पीठ के नाम से विख्यात है।
रत्न शास्त्री—पद्मश्री व पद्मभूषण दोनों प्राप्त करने वाली राज्य की प्रथम महिला, हीरालाल शास्त्री की पत्नी।
डॉ. पी.के सेठी—रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित राज्य के प्रथम व्यक्ति।
पं. विश्वमोहन भट्ट—सितारवादक, इन्होंने वीणा का आविष्कार किया।
सुरभि मिश्रा—वर्तमान में स्क्वैश की सनसनी के नाम से प्रसिद्ध।
पारुल शेखावत—राजस्थान की प्रथम विमान चालक।
आशा पाण्डे—जयपुर की आशा पाण्डे को फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान ”लीजीयो द ऑनर” से सम्मानित।
अस्मिता काला—भवाई नृत्यांगना ‘लिम्का’ बुक में नाम दर्ज।
अपूर्वी चंदेला — अपूर्वी चंदेला का जन्म: 4 जनवरी 1993; जयपुर में हुआ। यह एक निशानेबाज हैं, जिन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्म, ग्लासगो में 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग इवेंट में 206.7 का स्कोर बनाकर भारत को दूसरी बार निशानेबाजी में स्वर्ण पदक दिलाया।
जयपुर जिलें के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य —
आमेर (जयपुर) के लेख में कच्छवाहा शासकों को ‘रघुवंश तिलक’ कहा गया है।
जयपुर रियासत में झाड़शाही सिक्का प्रचलित था।
मुगलों की अधीनता स्वीकार करने वाला व वैवाहिक सम्बन्ध बनाने वाला राजपूताने (राजस्थान) का प्रथम शासक—भारमल कच्छवाहा था। (1562)
सबसे बड़े दो चाँदी के पात्रों का निर्माण एडवर्ड सप्तम् के राज्याभिषेक हेतु गंगाजल लाने के लिए माधोसिंह-द्वितीय ने करवाया।
आमेर के कुण्डा गाँव में हाथी गाँव की स्थापना की गई जिसका 19 जून, 2010 को लोकार्पण किया गया।
हाथी समारोह—चौगान स्टेडियम, होली के दिन।
देश का प्रथम सेवन स्टार रेजिडेंसियल क्लब जयपुर में है।
एशिया की सबसे बड़ी टकसाल जयपुर में है।
राजाबास गाँव-विश्व की सबसे लम्बी रसोई गैस पाइप लाइन।
राजस्थान का प्रथम महिला सलाह व सुरक्षा केन्द्र-जयपुर।
पं. झाबर लाल शर्मा (पत्रकारिता के पितामह) शोध संस्थान-जयपुर।
राजस्थान का निजी क्षेत्र का प्रथम पशु विज्ञान व चिकित्सा महाविद्यालय अपोलो कॉलेज जयपुर में है।
राज्य का प्रथम एवं एकमात्र कैंसर हॉस्पिटल—महावीर कैंसर हॉस्पिटल—जयपुर।
जे.के.लोन—राज्य का पहला हॉस्पिटल जिसमें सुपर स्पेशलिटी क्लिनिक सुविधा शुरू की गई है। यह बच्चों का अस्पताल है।
निजी क्षेत्र का पहला मेडिकल कॉलेज—सीतापुरा।
देश की पहली होम्योपोथी यूनिवर्सिटी की स्थापना जयपुर में हुई।
जयपुर के लबाणा मिट्टी के तवे प्रसिद्ध है।
करणसर (जयपुर) का ताला उद्योग प्रसिद्ध है।
जमुवारामगढ़ को ढूँढ़ाड़ का पुष्कर (गुलाबों की खेती के कारण) कहा जाता है।
ज्योतिराव फूले महिला विश्वविद्यालय—देश का प्रथम महिला विश्वविद्यालय।
इंदिरा गाँधी का देश का पहला मंदिर—अचरोल, निर्माता-पं. बीनू शर्मा।
देश का पहाल वैक्स वार म्युजियम (मोम का युद्ध संग्रहालय) जयपुर में निर्माणाधीन है, इसके डिजाइनर अनूप बरतरिया है।
राजस्थान का सबसे बड़ा भूमि बैंक—लैण्ड बैंक—जयपुर में निर्माणाधीन।
राज्य का प्रथम टेलीमेडिसिन सेन्टर—अपेक्स हॉस्पिटल, मानसरोवर, जयपुर।
राज्य का प्रथम फुट ब्रिज—जयपुर।
पिकॉक गार्डन—जयपुर—2006 में ।
राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ—जयपुर में 31 जनवरी, 1977 को स्थापित की गई।
राज्य गौ सेवा आयोग—23 मार्च, 1995 को जयपुर में।
गौवंश संवर्द्धन फार्म—बस्सी, जयपुर।
रवीन्द्र रंगमंच—15 अगस्त, 1963 को स्थापित।
पोथीखाना—जयपुर राजघराने का निजी पुस्तकालय।
राज्य की आँवला मण्डी-चौमू, टमाटर मण्डी-बस्सी, टिण्डा मण्डी-शाहपुरा।
टर्मिनल मार्केट—एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मण्डी-मुहाना (जयपुर)।
राज्य का प्रथम आधुनिक टैक्सटाइल पार्क-सलोना, जयपुर।
वर्ल्ड ट्रेड पार्क—दक्षिण एशिया का प्रथम 30 जून, 2005 को गोल्डन ब्रिक नाम से शिलान्यास।
राज्य का पहला स्टॉक एक्सचेंज—जयपुर, 1989 में।
206 फीट ऊँचा तिरंगा—गहलोत ने 24 अक्टूबर 2011 को जयपुर स्थित सेन्ट्रल पार्क में यह तिरंगा फहराया। राज्य का प्रथम स्थान ।
राज्य का पहला बिजनेस डाकघर—जयपुर।
हाइटेक लाइब्रेरी—चौड़ा रास्ता, जयपुर।
हीरे, जवाहरात के लिए जयपुर प्रसिद्ध है। नगीनाकारी का सबसे बड़ा लघु उद्योग-जैम सिटी ।
बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ आर्टस् एण्ड क्राप्ट, 1886, जयपुर (उपनाम-मदरसा हूनरी)
राष्ट्रीय खेल प्रशिक्षण संस्थान—जयपुर।
देश का तीसरा बिजनेस फ्रेंडली शहर—जयपुर।
भारत का पहला क्रिकेट इनडोर स्टेडियम—एस.एम.एस. स्टेडियम, जयपुर। यह राजस्थान का प्रथम क्रिकेट स्टेडियम है।
राजस्थान में तीज की सवारी, पतंग महोत्सव जयपुर का प्रसिद्ध है।
1 जनवरी, 2011 को जयपुर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई।
इंडियन आर्मी की दक्षिण-पश्चिमी कमान का मुख्यालय-जयपुर।
इंटरनेट से जुडऩे वाला राज्य का पहला गाँव—नायला गाँव (जयपुर)
10वाँ प्रवासी भारतीय सम्मेलन—7 से 9 जनवरी 2012 को जयपुर में सम्पन्न हुआ। (अतिथि-कमलाप्रसाद बिसेसर)
1982 में जयपुर नगर निगम बना।
पोमचा, समुन्द्र लहर लहरिया, कशीदा कला के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
मीणा जनजाति जयपुर में सर्वाधिक निवास करती है।
राजस्थान की सबसे बड़ी सुरंग जयपुर में स्थित घाट की घूणी में है।
समाधि प्रथा पर सर्वप्रथम रोक जयपुर रियासत ने 1844 में लगाई।
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राजस्थान के प्रत्येक जिले की अलग-अलग जीके इन हिंदी मैं
koi aap nhi h kya gk ka