दौसा जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Dausa Jila Darshan / Dausa District GK in Hindi
दौसा का मानचित्रयीय विस्तार/स्थिति – 25°33′ से 27°33′ उत्तरी अक्षांश तथा 76°50′ से 78°55′ पूर्वी देशान्तर
दौसा जिले का क्षेत्रफल – 3432 वर्ग किलोमीटर
दौसा का नगरीय क्षेत्रफल – 37.46 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 3394.54 वर्ग किलोमीटर
दौसा जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 5 हैं, जो निम्न है –
1. दौसा 2. लालसोट
3. महुआ 4. बांदीकुई
5. सिकराय
दौसा में उपखण्डों की संख्या – 5
दौसा में तहसीलों की संख्या – 6
दौसा में उपतहसीलों की संख्या – 1
दौसा में ग्राम पंचायतों की संख्या – 226
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार दौसा जिले की जनसंख्या के आंकड़े –
कुल जनसंख्या – 16,34,409 पुरुष – 8,57,787
स्त्री – 7,76,622 दशकीय वृद्धि दर – 23.5%
लिंगानुपात – 905 जनसंख्या घनत्व – 476
साक्षरता दर – 68.2% पुरुष साक्षरता – 83%
महिला साक्षरता – 51.9%
दौसा जिले में कुल पशुधन – 10,02,892 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
दौसा में कुल पशु घनत्व – 292 (LIVESTOCK DENSITY(PER SQ. KM.))
दौसा का ऐतिहासिक विवरण →
दौसा जिला → दौसा जिला ढूंढाड़ अंचल की प्रथम राजधानी रहा है।
सन् 1137 ई. में धौलेराय (दूल्हेराय) ने बड़गुजरों को हराकर ढूँढ़ाड़ में कच्छवाह वंश की स्थापना की एवम् दौसा को अपनी राजधानी बनाया।
दौसा का नाम देवगिरी पहाड़ी के नाम पर पड़ा। दौसा जिले की सीमा किसी भी अन्य राज्य या देश से नहीं लगती ।
दौसा को 10 अप्रैल, 1991 को जयपुर से चार तहसीलें दौसा, सिकराय, बसवा एवं लालसोट को अलग करके राज्य का 29वाँ जिला बना दिया गया। 15 अगस्त 1992 को सवाईमाधोपुर की महुवा तहसील को भी दौसा में मिला दिया गया। दौसा जिला जयपुर संभाग के अन्तर्गत आता है।
प्रारम्भ में राजस्थान का सबसे छोटा जिला दौसा था (2950 वर्ग किमी.) तथा धौलपुर दूसरे नम्बर पर था (3034 वर्ग किमी.) परन्तु सवाई माधोपुर जिले की महुआ तहसील को दौसा में मिला दिया गया, जिससे दौसा का क्षेत्रफल (3432 वर्ग किमी.) हो गया एवं धौलपुर राज्य का सबसे छोटा जिला बन गया।
दौसा जिले की प्रमुख नदियां →
दौसा जिले में बाणगंगा, मोरेल तथा ढुढ आदि नदियां बहती है।
बाणगंगा नदी – इसे अर्जुन की गंगा भी कहते है। बाणगंगा बैराठ की पहाड़ियों (जयपुर) से निकलकर जयपुर, दौसा तथा भरतपुर में बहती हुई उत्तरप्रदेश के आगरा में फतेहाबाद के निकट यमुना में मिल जाती है।
मोरेल नदी – यह नदी जयपुर जिले की बस्सी तहसील के चैनपुर गांव की पहाड़ियों निकलकर जयपुर तथा दौसा में दक्षिण-पूर्व दिशा में बहकर बनास नदी में मिल जाती है। मोरेल नदी पर दौसा जिले में मोरेल बांध (लालसोट) बनाया गया है।
दौसा जिले के बाँध – काला खोह, रेडिय़ो बाँध, माधोसागर, झील मिल्ली, चिर मिरी तथा मोरेल बांध दौसा जिले में स्थित है।
दौसा जिले के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल →
मेहंदीपुर बालाजी का मन्दिर – इस मंदिर में मूर्ति पर्वत का ही अंग है। यह हनुमान जी की बाल-प्रतिमा है। यह मन्दिर भूत-प्रेत, बुरी आत्माओं व जादू-टोने के निदान हेतु प्रसिद्ध है। इस प्रतिमा के बाईं ओर सदैव एक जलधारा बहती है। यह मन्दिर एन.एच. 11 पर है।
आभानेरी – यहाँ की चाँद बावड़ी (तीन ओर कलात्मक सीढ़ियां) प्रसिद्ध है। यहाँ पर हर्षद माता का मन्दिर है। यहां के मंदिरों का निर्माण प्रतिहारों द्वारा 8-9वीं शताब्दी में किया गया।
दौसा का किला – इसका निर्माण बड़गुर्जरों ने देवगिरी पहाड़ी पर सूप (छाजले) की आकृति में करवाया था। इस दुर्ग में ‘हाथीपोल’ तथा ‘मोरी दरवाज़ा’ नाम के दो दरवाज़े हैं। क़िले के अंदर भीतर वाले परकोटे के प्रांगण में ‘रामचंद्रजी’, ‘दुर्गामाता’, ‘जैन मंदिर’ तथा एक मस्जिद स्थित है। दौसा के किले में राजाजी का कुँआ, 4 मंजिल की बावड़ी प्रसिद्ध है। इस दुर्ग का सबसे प्राचीन महल 14 राजाओं की साल के लिए प्रसिद्ध है।
महाराणा सांगा का चबूतरा – घायल राणा सांगा को खानवा युद्ध के बाद बसवा ले जाया गया, बसवा में ही उनकी मृत्यु” होने वर्णन मिलता है। सांगा का चबूतरा/छतरी बसवा के समीप धूप तलाई में है।
आलूदा का बुबानियाँ कुण्ड ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। यहां बने कुण्ड पुराने समय में आने जाने के उपयोग में लाई जाने वाली बुबानियां (बहली) के आकार में निर्मित है।
दौसा जिले के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य →
ऐसा माना जाता है कि प्रथम स्वतन्त्रता दिवस पर जिस झण्डे को लाल किले की प्राचीर पर फहराया गया वह दौसा जिले के आलूदा गाँव की खादी से बना हुआ था। हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है।
बन्जारों की छतरी – लालसोट (दौसा) में है। यह छतरी छह स्तम्भों पर बनी है जो पुरातात्विक दृष्टि से अलग पहचान रखती है।
ब्रजकुंवरी – राजसिंह की पत्नी। इन्हें ब्रजदासी के नाम से जाना जाता है। यह लवाण (दौसा) की राजकुमारी थी। ब्रजदासी भागवत ब्रजकुँवरी द्वारा रचित श्रीमद् भागवत का ब्रजभाषा में अनुवाद है।
नई का नाथ तीर्थ स्थल लवाण (दौसा) में स्थित है।
झाझीरामपुरा – यहाँ पर झाझेश्वर महादेव का मंदिर है। यहां एक ही स्थान पर एक जलहरी में 121 महादेव (शिवलिंग) हैं।
दौसा के समीप गेटोलाव में संत दादू के शिष्य सुन्दरदास जी का स्मारक है। सुन्दरदास जी दादूपंथ की ‘नागा’ शाखा के प्रमुख संत थे। दादू पंथ में सर्वाधिक साहित्य की रचना सुन्दरदास जी ने ही की थी।
राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल का जन्म मण्डावर गाँव, महुआ (दौसा) में हुआ।
पीतल के बर्तनों के लिए बालाहेड़ी (महुआ, दौसा) प्रसिद्ध है तथा लवाण गांव की दरियां प्रसिद्ध है।
भण्डारेज की बावडिय़ाँ – भण्डारेज गाँव दौसा में है। भंडारेज में स्थित पांच मंजिला ऐतिहासिक बावड़ी है जो स्थापत्य की दृष्टि से उत्कृष्ट है। यह कुम्भाणी शासकों द्वारा निर्मित होने के कारण कुम्भाणी बावड़ी कहलाती है। यहां बालाजी का मेला भी लगता है।
भण्डारेज में लोहे के सामान, चमड़े की जूतियाँ, रंगाई-छपाई का कार्य किया जाता है। भण्डावरेज कस्बा महाभारत कालीन भद्रावती नगर से संबंधित है।
दौसा स्टेशन से 24 किमी. दूरी पर नीमला राईसेला गाँव में लगभग 10 लाख टन हेमेटाइट किस्म के लौह अयस्क के भण्डार मिले हैं।
बसवा मिट्टी के कलात्मक बर्तनों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।
लालसोट (दौसा) का हेला ख्याल प्रसिद्ध है।
ब्रह्माणी माता – किवन्दिति है कि लोग, ब्रह्माणी माता के दर्शन व भक्ति, विशेष रूप से राजनीतिक पद व मंत्रीपद पाने के लिए करते हैं। यह मंदिर मंडावरी गांव, लालसोट, दौसा में स्थित है।
बीजासनी माता का मेला – यह स्थान जिले के लालसोट तहसील में खोहरा गांव में स्थित है। यहां चेत्र सुदी पुर्णिमा के अवसर पर चार दिवसीय मेला लगता है।
गणगौर मेला → लालसोट तहसील में चैत्र सुदी तीज पर तीन दिवसीय मेला लगता है। जिसमें तीज की सवारियां निकाली जाती है।
पंच महादेव → यहां स्थित पंच महादेव मंदिरों में → नीलकण्ठ, बेजड़नाथ, गुप्तेश्वतर, सहजनाथ एवं सोमनाथ में सभी समुदायों के धर्मपरायण लोग नियमित रूप से दर्शन करते है।
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