जोधपुर जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Jodhpur District GK in Hindi / Jodhpur Jila Darshan
जोधपुर जिले के उपनाम — मरुस्थल का प्रवेश द्वार, राजस्थान की सूर्य नगरी, मरुकांतर प्रदेश
जोधपुर जिले का कुल क्षेत्रफल – 22,850 वर्ग किलोमीटर
नगरीय क्षेत्रफल – 280.97 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 22,569.03 वर्ग किलोमीटर है।
जोधपुर जिले की मानचित्र स्थिति/विस्तार – 26° से 27°37′ उत्तरी अक्षांश तथा 72°55′ से 73°52′ पूर्वी देशान्तर है।
जोधपुर जिले में कुल वनक्षेत्र – 338.03 वर्ग किलोमीटर
नोट-जोधपुर संभाग राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा संभाग है तथा वर्ष 1949 में राजस्थान में सम्मिलित होने से पूर्व तत्कालीन मारवाड़ रियासत की राजधानी भी जोधपुर ही था।
जोधपुर जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 10 है, जो निम्न है—
1. फलौदी, 2. लोहावट, 3. शेरगढ़, 4. ओसियाँ, 5. भोपालगढ़, 6. सरदारपुरा, 7. जोधपुर, 8. सूरसागर, 9. लूणी, 10. बिलाड़ा
उपखण्डों की संख्या – 5
तहसीलों की संख्या – 7
उपतहसीलों की संख्या – 4
ग्राम पंचायतों की संख्या – 339
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जोधपुर जिले की जनसंख्या के आंकड़े निम्न प्रकार है —
कुल जनसंख्या—36,87,165
पुरुष—19,23,928, स्त्री—17,63,237
दशकीय वृद्धि दर—27.7%, लिंगानुपात—916
जनसंख्या घनत्व—161, साक्षरता दर—65.9%
पुरुष साक्षरता—79%, महिला साक्षरता—51.8%
जोधपुर जिले में कुल पशुधन – 35,90,264 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
जोधपुर जिले में कुल पशु घनत्व – 157 (LIVESTOCK DENSITY(PER SQ. KM.))
जोधपुर जिले का ऐतिहासिक विवरण —
जोधपुर की स्थापना राव जोधा ने 12 मई, 1459 में की गई। जोधपुर की स्थापना से पूर्व मारवाड़ की राजधानी मण्डोर रही। राव जोधा ने मंडोर को सामरिक दृष्टि से अनुपयुक्त एवं असुरक्षित समझकर चिड़ियानाथ जी की टूक पहाड़ी पर ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी, शनिवार 12 मई, 1459 ई. को विशाल दुर्ग ”मेहरानगढ़” की नींव डालकर जोधपुर की स्थापना की।
राव जोधा के समय जोधपुर, भागीपोल, फुलेराव की पोल, भोमियाजी की घाटी वाली पोल और सिंहपोल के चार दरवाजों के भीतर बहुत ही छोटे भू-भाग में समाया हुआ था। 16वीं शताब्दी में राव मालदेव के समय में इसका काफी विस्तार हुआ।
राव मालदेव जोधपुर का सबसे प्रतापी शासक हुआ। जोधपुर के शासक मानसिंह राठौड़ ने 1818 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ सहायक सन्धि चार्ल्स मेटकॉफ के प्रयासों से की। राजस्थान एकीकरण के चतुर्थ चरण (वृहद राजस्थान 30 मार्च, 1949) में जोधपुर को राजस्थान में शामिल कर लिया। जोधपुर के शासक हनुवंत सिंह, मोहम्मद अली जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान में मिलना चाहते थे परन्तु सरदार पटेल के दबाव के कारण उन्होंने राजस्थान में मिलना स्वीकार किया। कहा जाता है कि हनुवंत सिंह, राजस्थान के एकीकरण में काले कपड़े पहनकर उपस्थित हुए थे।
जोधपुर के जलस्त्रोत —
जोधपुर में बहने वाली नदियाँ—लूनी, जोजरी, मीठड़ी।
जोधपुर अन्य जलाशय—फलौदी-खारे पानी की झील।
कायलाना झील—जोधपुर की सबसे बड़ी झील, यह प्राकृतिक झील है। राज्य की एकमात्र झील जिसमें इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना का पानी ‘राजीव गाँधी लिफ्ट केनाल’ द्वारा डाला जाता है। इसे प्रतापसागर झील भी कहते है (सरप्रताप ने इसका आधुनिकीकरण करवाया) जोधपुर शहर को जल की आपूर्ति इसी झील से होती है।
बालसमन्द झील—1159 ई. में बालक राव द्वारा निर्मित। यह झील जोधपुर-मण्डोर मार्ग पर है। बालसमन्द झील में अष्ट खम्भा स्थित है।
जसवन्त सागर बाँध—जोधपुर जिले का सबसे बड़ा बाँध। 2007 में टूट गया था।
अरणा-जरणा जल प्रपात—जोधपुर।
उम्मेद सागर बाँध, पिचियाक बाँध, प्रतापसागर बाँध आदि भी जोधपुर में स्थित है।
जोधपुर जिले के वन्य जीव अभयारण्य —
मृगवन—माचिया सफारी पार्क—स्थापना-1985, यह देश का प्रथम राष्ट्रीय वानस्पतिक उद्यान है।
अमृतादेवी मृगवन—खेजड़ली, स्थापना-1994, यहाँ विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला लगता है। यहाँ की मरु लोमड़ी प्रसिद्ध है। खेजड़ली गांव में विश्नोई सम्प्रदाय के लोगों द्वारा राज्यवृक्ष खेजड़ी की रक्षा हेतु प्राण न्यौछावर कर दिया गया था।
खेजड़ली ग्राम (जोधपुर) में अमृता देवी विश्नोई ने खेजड़ी वृक्ष बचाने के लिए 363 लोगों के साथ 1730 ई. में अपने प्राण त्यागे। विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी को खेजड़ली ग्राम में लगता है, जबकि खेजड़ी दिवस 12 सितम्बर को मनाया जाता है। राजस्थान में अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार की शुरुआत 1994 में हुई एवं प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर्त्ता—गंगा विश्नाई।
राज्य में जीवों की रक्षार्थ पहला बलिदान सन् 1604 में जोधपुर रियासत के रामसड़ी ग्राम में गौरा व कर्मा ने दिया।
धावा डोली अभयारण (जोधपुर) में सर्वाधिक कृष्ण मृग पाये जाते है।
जोधपुर जन्तुआलय—स्थापना-1936, यह जन्तुआलय गोडावण पक्षी के कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रसिद्ध है।
गुढ़ा विश्नोइयाँ कन्जर्वेशन रिजर्व (स्थापना 15.12.2011) एवम् सुन्धामाता (स्थापना 25-11-2008) कन्जर्वेशन रिजर्व दोनों जोधपुर में हैं।
जोधपुर के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल —
मेहरानगढ़ दुर्ग — उपनाम-मयूरध्वजगढ़/गढ़ चिन्तामणी/ कागमुखी।
इसका निर्माण राव जोधा ने मई 1459 ई. (ज्येष्ठ सुदी 11 वि.स. 1515) में चिड़ियाटूक (चिड़ियानाथ योगी के लिए प्रसिद्ध) पहाड़ी पर करवाया। दुर्ग की नींव-करणी माँ द्वारा रखी गई तथा दुर्ग की नींव में बलि राजिया भांभी की दी गई थी।
विद्वानों के कथन—जैकलिन कैनेडी ने इसे विश्व का आठवाँ आश्चर्य बताया।
रूपयार्ड क्लिपिंग—”दुर्ग का निर्माण शायद परियों व फरिश्तों ने करवाया।”
तोपें—शंभुबाण (अभयसिंह सरबुलन्द खाँ से छीनकर लाया), किलकिला (अजीत सिंह) गजनी खां (गजसिंह ने 1607 में)
दुर्ग के लोहापोल — दरवाजे के समीप धन्ना व भींवा (मामा-भान्जा) की 10 खम्भों की छतरी है, इसका निर्माण अजीत सिंह ने करवाया। इस दुर्ग के संग्रहालय में अकबर की तलवार रखी हुई है।
जसवन्त थड़ा — मेहरानगढ़ की तलहटी में 1906 ई. में सरदार सिंह ने अपने पिता जसवन्त सिंह द्वितीय की स्मृति में करवाया। जसवन्तथड़ा को राजस्थान/मारवाड़ का ताजमहल कहते हैं। यह गीतमय संगमरमर का स्फटिक अपनी शोभा में अद्वितीय एवं बेजोड़ है। इस स्मृति भवन में जोधपुर नरेशों की वंशावली के मनोहारी चित्र लगे हैं।
मेहरानगढ़ दुर्ग के महल—फूलमहल-अभय सिंह, मोतीमहल-सूरसिंह।
सिणगारी/शृंगार चंवरी—जोधपुर के शासकों का राजतिलक।
नोट—जोधपुर का मेहरानगढ़ किला देश के प्रसिद्ध दुर्गों में से एक है जो स्थापत्य कला, गौरवमय शौर्य तथा लोक संस्कृति का हमें ज्ञान कराता है। धरातल से करीब चार सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित मेहरानगढ़ किले की दीवार 10 से 120 फीट ऊंची तथा 70 फीट चौड़ी है। इस दुर्ग की लम्बाई 500 गज और चौड़ाई 200 गज है।
मण्डोर का किला—जोधपुर, मण्डोर माण्डव्य ऋषि की तपोभूमि थी। मण्डोर का प्राचीन नाम ‘माण्डवपुर’ था। मंडोर, मारवाड़ नरेशों की पूर्व राजधानी थी।
उम्मेद महल—अकाल के दौरान जनता को रोजगार देने के उद्देश्य से इस महल का निर्माण उम्मेद सिंह ने 1928 से 1940 के मध्य छीतर पत्थरों से करवाया, इसलिए इसे ”छीतर पैलेस” भी कहते हैं। एशिया के भव्य प्रासादों में जोधपुर का उम्मेद भवन का स्थान शीर्ष पर आता है। वर्तमान में उम्मेद भवन में मनोरम संग्रहालय, थियेटर, भू-तल तरणताल, नृत्य कक्ष, केन्द्रीय हॉल दर्शनीय है।
एक थम्बा महल—इसे प्रहरी मीनार भी कहते हैं, इसका निर्माण अजीत सिंह ने भूरे रंग के धाटू के पत्थरों से करवाया।
राई का बाग पैलेस—निर्माण-जसवन्त सिंह। सन् 1883 ई. में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने उपदेश शासक को इसी महल में सुनाये थे।
मण्डोर की छतरियाँ—यहाँ पंचकुण्ड नामक स्थान पर राठौड़ राजाओं की छतरियाँ है। प्रमुख छतरियाँ-कागा की छतरी, गौरा धाय की छतरी।
बीस खम्भों की छतरी/सिंघबियों की छतरियाँ—यहाँ की प्रमुख छतरियाँ-अखैराज, जैसलमेर रानी, अहाड़ा हिंगोला की छतरी।
कीरत सिंह की छतरी—मेहरानगढ़ (जोधपुर)।
पुष्य हवेली—विश्व की एकमात्र हवेली जिसका निर्माण पुष्य नक्षत्र में हुआ।
जोधपुर की अन्य हवेलियाँ—बड़े मिंया की हवेली, पाल हवेली, राखी हवेली, पोकरण हवेली, पच्चिसां हवेली, आसोप हवेली, सांगीदास धानवी की हवेली (फलौदी), लालचन्द ढड़्डा की हवेली (फलौदी), मोती लाल अमरचन्द कोचर हवेली, फूलचन्द गोलछा हवेली (फलौदी)।
आई माता का मन्दिर, बिलाड़ा (जोधपुर)—
यह माता नव दुर्गा का अवतार है। बचपन का नाम-जीजीबाई। आई पंथ की स्थापना नीम के वृक्ष के नीचे। सीरवी जाति की कुल देवी, गुरु-रामदेवजी, आई माता के मन्दिर को दरगाह/थान/वडेर कहते हैं। माता के मन्दिर में कोई मूर्ति नहीं है तथा दीपक की ज्योति से केसर टपकती है। इस मन्दिर में गुर्जर जाति का प्रवेश निषेध है। माता की पूजा प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष द्वितीया को की जाती है।
ऊँटा माता — इनका मंदिर भी जोधपुर में है।
चामुण्डा माता — मेहरानगढ़-जोधपुर, यह माता प्रतिहार वंश की कुलदेवी है। मेला दोनों नवरात्रों में। इस माता के मन्दिर में 2008 के नवरात्रों में भगदड़ मचने से 227 लोगों की मृत्यु हो गई। जाँच के लिए जसराज चौपड़ा आयोग गठित। 1857 में बिजली गिरने से मंदिर को काफी क्षति हुई। पुनर्निर्माण तख्तसिंह ने करवाया जीर्णोद्धार दिवस प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है।
नागणेची माता — मण्डोर, जोधपुर के राठौड़ों व लोकदेवता कल्लाजी की कुलदेवी। माता की प्रतिमा-18 भुजाओं की, इस माता का दूसरा रूप श्येन पक्षी/बाज/चील है।
लटियाल माता — फलौदी, जोधपुर। पुष्करणा ब्राह्मणों की कुल देवी। माता के खेजड़ी वृक्ष की पूजा होती है, इसलिए इसे खेजड़ी बेरिराय भवानी कहते हैं।
पाबू जी — ऊँटों के देवता, लक्ष्मण का अवतार, हाड़-फाड़ का देवता। पाबूजी का जन्म कोलू गाँव फलौदी में हुआ पाबूजी बांयी ओर झुकी हुई पाग के लिए प्रसिद्ध है। मेला-चैत्र अमावस्या को कोलू गाँव में। पाबूजी की घोड़ी-केसर कालमी। देवली चारणी की गायों को छुड़ाते हुए जोधपुर के देंचू में प्राण त्यागे। सबसे लोकप्रिय फड़ पाबूजी की ही है, जिसे रावण हत्था वाद्य यन्त्र के साथ बाँची जाती है।
हरिहर मन्दिर—औंसिया, जोधपुर।
अचलनाथ महादेव—जोधपुर, इस मंदिर के पास ‘गंगा बावड़ी’ है।
रावण का मन्दिर, मण्डोर—यह उत्तरी भारत का पहला रावण मन्दिर है, रावण की पत्नी मन्दोदरी ओझा जाति की मण्डोर की निवासी थी। रावण की मूर्ति को अनुग्रह मूर्ति कहा जाता है।
33 करोड़ देवी देवताओं का मन्दिर—मण्डोर, इसे “HALL OF HEROES” या ”वीरों की साल ” कहते है।
सूर्य मन्दिर—औंसिया, औंसिया को 24 मन्दिरों की स्वर्ण नगरी भी कहते है, यह राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है, इसका निर्माण 8वीं सदी में प्रतिहार शासक वत्सराज ने करवाया। इस मन्दिर को ”राजस्थान का ब्लैक पैगोड़ा” या ‘राजस्थान का कोणार्क” के नाम से भी जाना जाता है।
औंसिया के जैन मन्दिर—प्राचीनतम औंसिया का महावीर जैन मन्दिर पश्चिमी भारत का प्रथम जैन मंदिर है। सच्चियाय माता श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के ओसवाल समाज की कुल देवी है।
जोधपुर के प्रसिद्ध व्यक्तित्व —
ज्योति स्वरूप शर्मा— इन्होंने रेणुका आर्ट्स हस्तशिल्प शोध संस्थान की स्थापना की।
मुहणौत नैणसी— को ”राजपूताने का अबुल फजल”, जयपुर निवासी मुंशी देवी प्रसाद ने कहा। इन्होंने ”मुहणौत नैणसी री ख्यात” व ”मारवाड़ रा परगना री विगत” (राजस्थान का गजेटियर) की रचना की। मुहणौत नैणसी ने जालौर के शासक कीर्तिपाल को ”कित्तु एक महानराजा” की उपाधि दी थी।
राव चन्द्रसेन— मारवाड़ का प्रताप, भूला-बिसरा राजा, ”मारवाड़ का विस्मृत नायक” आदि नामों से प्रसिद्ध है।
मेजर शैतान सिंह— द्वितीय परमवीर चक्र विजेता (1962)।
विजयदान देथा— बोरुन्दा, जोधपुर 1926 ई.। ग्रन्थ-बातां री फुलवारी 2007 में पद्म श्री से सम्मानित।
सुमनेश जोशी— ‘रियासती’ दैनिक समाचार पत्र के सम्पादक। इसी अखबार ने 26 मई, 1948 को जोधपुर के राजा हनुवंत सिंह के पाकिस्तान में मिलने के इरादों का भण्डाफोड़ किया।
लालसिंह भाटी— गैंडों की खाल से बनी ढ़ाल पर नक्काशी करने हेतु राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित।
डॉ. सीताराम लालस— नरेना, इनकी रचना ”राजस्थानी भाषा का शब्दकोश” है इसमें 10 खण्ड है, एन्साइक्लोपेडिया ऑफ ब्रिटेनिका ने इन्हें ‘राजस्थानी जुबान की मशाल’ कहकर सम्बोधित किया।
नारायण सिंह माणकलाव— राज्यसभा में मनोनीत प्रथम राजस्थानी।
कैलाश सांखला— पर्यावरणविद् सांखला ‘टाइगर मैन’ के उपनाम से प्रसिद्ध।
गवरी देवी— मांड गायिका।
महिपाल— प्रथम राजस्थानी फिल्म नजराना (1942) के अभिनेता।
गरिमा गुप्ता— शून्य गुरुत्वाकर्षण में प्रयोग करने वाली देश की प्रथम छात्रा (17-3-07)।
जोधपुर जिले के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य —
क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा संभाग-जोधपुर
जोधपुर में प्रथम सहकारी डाकघर की 1839 में स्थापना की गई।
राजस्थान उच्च न्यायालय—29 अगस्त, 1949 को सवाई मानसिंह द्वारा उद्घाटन। प्रथम मुख्य न्यायाधीश-कमलकांत वर्मा।
विश्व का सबसे बड़ा रिहायशी पैलेस—छीतर पैलेस।
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान संस्थान—जोधपुर स्थापना,1950 ई.।
देश का दूसरा एम्स मेडिकल कॉलेज-जोधपुर में (सितम्बर 2012) से शुरु।
जोधपुरी कोट-पेन्ट को राष्ट्रीय पोशाक का दर्जा दिया गया है।
जोधपुर में खुफिया एंजेसी प्रशिक्षण केन्द्र (इंटेलीजेन्स ब्यूरो) की स्थापना।
खजूर पौध प्रयोगशाला—चौपासनी, देश की पहली व एशिया की दूसरी सबसे बड़ी प्रयोगशाला, राज्य सरकार व गुजरात की अतुल राजस्थान डेटपाम लिमिटेड की साझेदारी से बनाई जा रही है।
सूचना व प्रौद्योगिकी विभाग ने जोधपुर को ई-जिला घोषित किया।
नारग गाँव—एशिया के सबसे बड़े जर्म प्लाज्म स्टेशन का शिलान्यास 14-08-07 को जोधपुर के इस गाँव में हुआ।
जोधपुर के पाल गाँव में राजस्थान की फिल्म सिटी अवस्थित है।
जोधपुर में राज्य की पहली फुटबॉल अकादमी की स्थापना।
देश का तीसरा कारकस प्लांट-जोधपुर (प्रथम-दिल्ली, दूसरा-जयपुर)
राज्य सरकार द्वारा जोधपुर में टेक्सटाइल पार्क स्थापित करने की मंजूरी दे दी।
राजस्थान का पहला रेल रत्न होटल—जोधपुर में प्रस्तावित।
मुख्यमंत्री बालिका सम्बल योजना की शुरुआत 13-08-2007 को जोधपुर में हुई।
राजस्थान का दूसरा एड्स उपचार केन्द्र-जोधपुर (पहला-जयपुर)।
उम्मेद कला पीठ चित्रशैली—जोधपुर (संस्थापक-लाल सिंह भाटी)।
सजग प्रहरी—जोधपुर में B.S.F. के जवानों को चौकस व मुस्तैद बनाने हेतु यह अभियान 22 मई से 31 मई, 2006 तक चलाया गया। जिसे ‘गर्म हवा’ के नाम से भी जाना जाता है।
राजस्थान का प्रथम फ्लाईंग क्लब-जोधपुर।
देश का प्रथम कोयला आधारित बिजलीघर-बाप (जोधपुर)
लोलावास— जोधपुर की इस पिछड़ी ढ़ाणी में विलायती बबूल को जलाकर बिजली बनाने का राजस्थान में अपनी तरह का पहला टेस्ट पायलट प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया गया है।
मीरां बाई अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान—जोधपुर।
भारत का प्रथम हैरिटेज होटल—अजीत भवन (जोधपुर)।
राष्ट्रीय कला मण्डल—जोधपुर-1954, संस्थापक— गोवर्धन लाल काबरा।
रूपायन संस्थान—बोरुंदा (जोधपुर 1960) में कोमल कोठारी द्वारा स्थापित।
कुरजां पक्षी—खींचन, गाँव (जोधपुर), शीतकाल में बहुतायत मिलते है।
भारत समन्वित बाजरा अनुसंधान संस्थान परियोजना का मुख्यालय-जोधपुर।
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय—(जोधपुर) इसके अधीन अपने नगर की सीमाओं के बाहर का कोई महाविद्यालय नहीं है।
राजस्थान विधि विश्वविद्यालय, राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय-जोधपुर।
स्टेट रिमोट सेसिंग एप्लीकेशन सेंटर—जोधपुर।
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी—जोधपुर, 1957
राज्य का प्रथम हज हाउस का लोकार्पण-जोधपुर, 1 अप्रैल, 2012 को।
राज्य का दूसरा निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क—जोधपुर।
राज्य का प्रथम स्पाइस पार्क—जोधपुर।
केन्द्रीय शुष्क भूमि क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) —जोधपुर। (स्थापना 1959)
शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (AFRI) —जोधपुर।
गोमठ (फलौदी, जोधपुर) का ऊँट बोझा ढ़ोने के लिए प्रसिद्ध है।
अश्व प्रजनन केन्द्र—बिलाड़ा।
राजस्थान का दूसरा ‘एग्रो फूड पार्क’- बोरनाड़ा।
बादामी संगमरमर—जोधपुर।
राज्य का प्रथम सौर ऊर्जा आधारित फ्रीज-बालेसर।
नवीनतम सौर वैधशाला—मथानिया (जोधपुर)।
राज्य का प्रथम ‘सेज’ हेण्डीक्रॉफ्ट-बोरनाड़ा, जोधपुर।
केन्द्र सरकार द्वारा जोधपुर में ‘ग्वारगम प्रयोगशाला’ की स्थापना की मंजूरी दे दी गई।
राज्य का दूसरा व सबसे बड़ा सफेद सीमेंट का कारखाना—बिरला व्हाइट सीमेंट वर्क्स-1998 में खारिया-खंगार, जोधपुर में है।
केन्द्रीय ऊन बोर्ड—जोधपुर।
रातानाड़ा हवाई अड्डा—जोधपुर (सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण)।
देश का तीसरा व राज्य का पहला राजीव गाँधी टूरिज्म कन्वेंशन सेंटर-जोधपुर में प्रस्तावित।
मारवाड़ महोत्सव-जोधपुर (अक्टूबर में)
रन क्षेत्र (लवणीय दल क्षेत्र)-बाप (जोधपुर)।
राजस्थान राज्य का सर्वाधिक शुष्क स्थान—फलौदी।
जनाना बाग—बालसमन्द झील के पास (सूरसिंह द्वारा अपनी रानी के लिए)
जोधपुर दुर्ग में कीलम जड़ित मरकत मणि के दो गुलाबी प्यालेनुमा जलाशय विख्यात है—(i) गुलाबसागर (ii) गुलाब सागर का बच्चा।
फलौदी को पश्चिमी काशी कहा जाता है।
जालौरिया का वास (अधरशिला, जोधपुर)—अधरशिला मंदिर का स्तम्भ जमीन से 0.5 ईंच ऊपर उठा हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह मन्दिर झूल रहा है। यह मन्दिर रामदेवजी का है।
दशहरा शोक पर्व—मण्डोर (जोधपुर) में मनाया जाता है।
दशहरा के अवसर पर मेहरानगढ़ (जोधपुर) से राम की सवारी निकाली जाती है।
रामड़ावास (जोधपुर) में जाम्भोजी का तीर्थ स्थल है।
खेड़ापा (जोधपुर) में रामस्नेही सम्प्रदाय की पीठ है, इसका संस्थापक रामदास। नाथ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ—महामंदिर (जोधपुर) है। महामंदिर का निर्माण मानसिंह राठौड़ ने करवाया था।
जोधपुर के तैय्यब खान को बंधेज कार्य हेतु पद्मश्री से सम्मानित किया था।
मोठड़ा (जब लहरिये की लाइने एक-दूसरे को काटती है, तो वह मोठड़ा कहलाता है) जोधपुर का प्रसिद्ध है।
लकड़ी के झूले, चुनरी, लाख का काम, जस्ते की मूर्तियाँ व वस्तुएँ, बादला, चमड़े की मोजडिय़ाँ, मिनिएचर पेंटिग्स जोधपुर के प्रसिद्ध है।
जोधपुर में प्रथम सरपंच सम्मेलन 08-01-2007 को सम्पन्न।
मलमल-मथानियाँ व तनसुख की प्रसिद्ध है। मथानिया मिर्ची उद्योग हेतु भी प्रसिद्ध है।
ईसबगोल अनुसंधान केन्द्र—जोधपुर।
राज्य की प्रथम हाइटेक जीरा मण्डी—भदवासिया।