झालावाड़ जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Jhalawar District GK in Hindi / Jhalawar Jila Darshan
झालावाड़ जिले का कुल क्षेत्रफल – 6219 वर्ग किलोमीटर
नगरीय क्षेत्रफल – 69.22 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 6149.78 वर्ग किलोमीटर है।
झालावाड़ जिले की मानचित्र स्थिति – 23°45’20 से 24°52’17 उत्तरी अक्षांश तथा 75°27’35 से 76°56’48 पूर्वी देशान्तर है।
झालावाड़ जिले में कुल वनक्षेत्र – 1377.68 वर्ग किलोमीटर
झालावाड़ जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 4 है, जो निम्न है —
1. डग, 2. झालरापाटन
3. खानपुर, 4. मनोहरथाना
उपखण्डों की संख्या – 5
तहसीलों की संख्या – 7
पंचायत समितियों की संख्या – 6
ग्राम पंचायतों की संख्या – 252
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार झालावाड़ जिले की जनसंख्या के आंकड़े निम्नानुसार है —
कुल जनसंख्या—14,11,129
पुरुष—7,25,143, स्त्री—6,85,986
दशकीय वृद्धि दर—19.6%, लिंगानुपात—946
जनसंख्या घनत्व—227, साक्षरता दर—61.5%
पुरुष साक्षरता—75.8%, महिला साक्षरता—46.5%
झालावाड़ जिले में कुल पशुधन – 10,24,929 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
झालावाड़ जिले में कुल पशु घनत्व – 165 (LIVESTOCK DENSITY(PER SQ. KM.))
झालावाड़ जिले का ऐतिहासिक विवरण —
झालावाड़ को जालिमसिंह ने बसाया था। जालिमसिंह के पौत्र झाला मदन सिंह ने 1838 ई. में कोटा से एक स्वतन्त्र रियासत झालावाड़ की स्थापना की। अंग्रेजों द्वारा निर्मित यह राजस्थान की एकमात्र रियासत है। राजस्थान एकीकरण के द्वितीय चरण में झालावाड़ को वृहत राजस्थान में शामिल कर लिया। झालावाड़ को ”झालाओं की भूमि” से परिभाषित किया गया है।
झालावाड़ जिले की नदियाँ —
चन्द्रभागा नदी—चन्द्रभागा नदी का उद्गम झालावाड़ जिले के सेमली गाँव से हुआ है। चन्द्रभागा नदी के किनारे झालरापाटन में चन्द्रभागा पशु मेला लगता है।
झालावाड़ में बहने वाली अन्य नदियां-कालीसिन्ध, पार्वती, आहू, छापी, निवाज।
झालावाड़ के जलाशय व बाँध—छापी, चौली, मनोहरथाना बाँध।
दर्रा वन्य जीव अभयारण— यह कोटा व झालवाड़ में स्थित है।
दर्रा वन्य जीव अभयारण्य को राज्य का तीसरा राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान सरकार ने 9 जनवरी, 2012 को घोषित किया गया। इसे हाड़ौती के प्रकृति प्रेमी शासक मुकंद सिंह के नाम पर मुकंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान नाम दिया गया है। इसका क्षेत्रफल 199.55 वर्ग किलोमीटर है।
राज्य में सर्वाधिक घडिय़ाल इसी अभयारण में पाये जाते हैं। यह अभयारण मानव की हुब-हू आवाज निकालने वाला गागरोनी तोता (वैज्ञानिक नाम—एलेक्जेन्ड्रीया पेराकीट) के लिए प्रसिद्ध है। इसे हीरामन तोता, हिन्दुओं का आकाश लोचन व टुईयाँ तोता भी कहते हैं। पक्षी वैज्ञानिक डॉ.सलीम अली ने हीरामन तोते की हिद्धलखा जाति बताई है।
वन्य जीवों को पास से देखने के लिए रामसागर, बोड़ा, तलाई, झामरा, अमझार आदि स्थानों पर रियासकालीन अवलोकन स्तम्भ बने हुए हैं जिन्हें ‘औंदिया’ कहा जाता है। दर्रा अभयारण्य की मुकंदरा पहाड़ियों में आदिमानव के शैलाश्रय एवं उनके द्वारा चित्रांकित शैल चित्र मिलते है।
झालावाड़ के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल —
गागरोण दुर्ग —
गागरोण दुर्ग के उपनाम डोडगढ़/धूलरगढ़/जल दुर्ग/उदक दुर्ग/मुस्तफाबाद/गर्गराटपुर आदि है।
इस दुर्ग निर्माण 7-8वीं शताब्दी में डोडा राजपूत/परमार (कहीं-कहीं पर बीजलदेव भी प्राप्त होता है) ने मुकुन्दरा की पहाड़ी पर आहू व कालीसिन्ध नदियों के संगम पर करवाया। इस संगम को स्थानीय भाषा में सामेल जी कहते हैं। भारत का एक मात्र ऐसा दुर्ग है जो बिना नींव के पत्थर की चट्टान पर है। इस दुर्ग का 100 वर्षीय राष्ट्रीय पंचाग देशभर में प्रसिद्ध था तथा यहाँ लकड़ी का उठाऊ पुल भी है।
यहां पर औरंगजेब ने खुरासन से आये प्रसिद्ध सूफी संत हमीमुद्दीन (मीठेशाह) की दरगाह बनवाई।
संत पीपा की छतरी गागरोन दुर्ग में स्थित है। संत पीपा का मूल नाम प्रतापसिंह तथा इनके गुरु का नाम रामानंद था। संत पीपा को दर्जी समुदाय के देवता कहते है। संत पीपा के अनुसार मोक्ष का प्रमुख साधन ‘भक्ती’ है। संत पीपा का मंदिर समदड़ी गांव (बाड़मेर), गुफा टोड़ारायसिंह (टोंक) तथा पीठा मठ द्वारका (गुजरात) में है। गुरु ग्रन्थ साहिब (सिख धर्म) में पीपा के भजनों को शामिल किया गया है। संत पीपा ने दिल्ली के फिरोज शाह तुगलक को हराया था।
गागरोण दुर्ग में स्थित दर्शनीय स्थल-
बुलन्द दरवाजा इसके निर्माता औरंगजेब थे।
मिठे शाह की दरगाह—निर्माता औरंगजेब, मिठे शाह खुरासान से यहाँ देवनसिंह के काल में आये थे। यहां पर गागरोन उर्स ज्येष्ठ शुक्ल एकम् को भरता है।
भगवान मधुसूदन का मन्दिर—निर्माता दुर्जन साल।
गीधकराई पहाड़ी—इस पहाड़ी से राजनैतिक बंदियों को गिराकर मृत्युदण्ड दिया जाता था।
गागरोण दुर्ग में शिवदास गाडण ने ‘अचलदास खींची री वचनिका’ नामक ग्रन्थ की रचना की। प्रसिद्ध कवि पृथ्वीराज राठौड़ ने अपनी रचना ‘बेलिकिसन रुकमणी री ख्यात’ इसी दुर्ग में की। इस ग्रन्थ के दो पात्र पाथल व पीथल है। (पाथल महाराणा प्रताप को कहा है तथा पीथल स्वयं (पृथ्वीराज राठौड़) को कहा है)
इस ग्रन्थ को पढ़कर टॉड के कहा ”शायद प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार की” इतिहासकार टॉड के इस कथन को असत्य मानते हैं।
नोट—दुरसा आढ़ा ने इस ग्रन्थ को पाँचवा वेद व उन्नीसवाँ पुराण माना है।
गागरोण दुर्ग के साके —
पहला साका —1423 ई.-माण्डू सुल्तान अलपखाँ गौरी व अचलदास खींची के बीच युद्ध हुआ।
दूसरा साका—1444 ई., माण्डू सुल्तान महमूद खिलजी व पाल्हणसी के मध्य। महमूद खिलजी ने इसका नाम मुस्तफाबाद रखा।
मनोहर थाना दुर्ग — यह दुर्ग परवन व कालीखोह नदियों से घिरा हुआ है। इस दुर्ग में भीलों की आराध्य देवी विश्ववंति का प्रसिद्ध मन्दिर है।
नवलखा दुर्ग — इस दुर्ग की नींव पृथ्वीसिंह ने झालरापाटन में रखी।
शीतलेश्वर महादेव का मन्दिर (झालरापाटन) — चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित इस मन्दिर को चन्द्रमोली मंदिर कहते है, यह राजस्थान का पहला समयांकित मंदिर है। जिस पर लिखा हुआ है-689 ई.। यह गुप्तकालीन मंदिर है। यह एक अर्द्धनारीश्वर मन्दिर है अर्थात् आधा शिव आधी पार्वती।
सात सहेलियों का मन्दिर/ पद्मनाथ मन्दिर झालरापाटन — इसे घण्टियों का मंदिर भी कहते हैं। यह मन्दिर खजुराहो शैली में बना हुआ है तथा कर्नल जेम्स टॉड ने इसे ‘चार भुजा मंदिर’ कहा है। ध्यान रहे राजस्थान में घण्टियों का शहर ‘झालरापाटन’ को कहा जाता है।
सूर्य मंदिर (झालरापाटन)—यह राजस्थान का सबसे प्राचीन सूर्य मंदिर है। इस मंदिर में सूर्य भगवान की घुटने तक जूते पहने हुए की प्रतिमा है।
भवानी नाट्यशाला—इसका निर्माण सन् 1921 ई. में भवानीसिंह ने पारसी ऑपेरा शैली में करवाया। समस्त राजस्थान में यूरोपीय शैली की यही एकमात्र नाट्यशाला है।
कौलवी की बौद्ध गुफाएं—बौद्धकालीन 35 गुफाएँ क्यासरा गाँव के नजदीक है।
द्वारकाधीश मंदिर—जालम सिंह द्वारा निर्मित गोमती सागर तालाब के नजदीक स्थित है।
आदिनाथ दिगम्बर का जैन मन्दिर—चाँदखेड़ी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में भगवान आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा है।
चन्द्रावती—इसका निर्माण चन्द्रसेन ने करवाया। चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित इस स्थल से 11-12वीं सदी के अनेक मंदिरों के ध्वस्त अवशेष मिलें हैं।
रैन-बसेरा — किशनसागर झील के नजदीक एक लकड़ी का बना विश्राम गृह रैन-बसेरा कहलाता है। इसका निर्माण वन शोध संस्थान (देहरादून) में 1936 ई. में हुआ इसे झालावाड़ के तत्कालीन महाराजा वहाँ से खरीदकर लाये।
गोमती सागर पशु मेला — यह वैशाख शुक्ल त्रयोदशी (पूर्णिमा) से ज्येष्ठ पंचमी तक झालरापाटन में भरता है। यह हाड़ौती अंचल का सबसे बड़ा पशु मेला है।
चन्द्रभागा पशु मेला— यह मेला कार्तिक शुक्ल् एकादशी से मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी तक झालरापाटन में भरता है।
झालावाड़ के मुख्य खनिज — झालावाड़ जिले में इमारती पत्थर (कोटा स्टोन) की खानें है। अन्य खनिजों में कैलसाइट, बॉक्साइट, डोलोमाइट, लाईम स्टोन, सैंड स्टोन आदि खनिज पच पहाड़ और डग क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।
झालावाड़ के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य —
झालरापाटन के नजदीक एक नया पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है।
राज्य का दूसरा साइंस पार्क झालरापाटन में बनाया जाएगा।
राज्य की पहली किसान कम्पनी का गठन बकानी, झालावाड़ में हुआ।
राज्य सरकार ने झालरापाटन को 2006 में हेरिटेज सिटी बनाने की घोषणा की।
राज्य का तीसरा सुपर पावर थर्मल—झालावाड़ में स्थापित किया गया है।
राजस्थान क प्रथम महिला मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे का विधानसभा क्षेत्र—झालरापाटन है।
सहकारी किसान क्रेडिट कार्ड योजना का शुभारम्भ झालावाड़ जिले से किया गया।
राजस्थान का एकमात्र अल्पसंख्यक बी.एड.कॉलेज—डॉ. जाकिर हुसैन प्रशिक्षण महाविद्यालय-झालावाड़।
आलनियां गाँव में पुरापाषाणकालीन पेंटिग प्राप्त हुई है।
खानपुरा — यहाँ नदी घाटी सभ्यता के अवशेष पाये गये है। कोटा के पुरातत्त्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा इसकी खोज की गई। ये अवशेष 4500 साल पुराने माने जा रहे है। ये अवशेष हाड़ौती अंचल में अभी तक हुई खोजों में सबसे प्राचीन खोज है।
बिन्दौरी लोक नृत्य—झालावाड़ का प्रसिद्ध है। यह होली के अवसर पर किया जाता है।
गंगधार—यहाँ पर वि.सं. 480 का डाकिनी देवियाँ शिलालेख खोजा गया है।
संतरा उत्पादन में झालावाड़ अग्रणी है, इसलिए इसे राजस्थान का नागपुर कहते है।
झालावाड़ में हवाई पट्टी के नाम से खेल संकुल का निर्माण किया।
झालावाड़ को राज्य की प्रथम विशिष्ट अश्वगंधा मंडी का दर्जा दिया गया है।
अफीम को ‘काला सोना’ कहा जाता है, झालावाड़ में अफीम की फसल भी उत्पादित की जाती है।