जालौर जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Jalore District GK in Hindi / Jalore Jila Darshan
जालौर जिले का कुल क्षेत्रफल – 10,640 वर्ग किलोमीटर
नगरीय क्षेत्रफल – 48.43 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 10,591.57 वर्ग किलोमीटर है।
जालौर जिले की मानचित्र स्थिति – 24°48’5 से 25°48’37” उत्तरी अक्षांश तथा 71°7′ से 75°5’53” पूर्वी देशान्तर है।
जालौर जिले में कुल वनक्षेत्र – 545.68 वर्ग किलोमीटर
जालौर जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 5 है, जो निम्न है —
1. आहोर 2. जालौर
3. भीनमाल 4. सांचौर
5. रानीवाड़ा
उपखण्डों की संख्या – 5
तहसीलों की संख्या – 7
ग्राम पंचायतों की संख्या – 264
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जालौर जिले की जनसंख्या के आंकड़ें निम्नानुसार है —
कुल जनसंख्या—18,28,730
पुरुष—9,36,634, स्त्री—8,92,096
दशकीय वृद्धि दर—26.2%, लिंगानुपात—952
जनसंख्या घनत्व—172, साक्षरता दर—54.9%
पुरुष साक्षरता—70.7%, महिला साक्षरता—38.5% (न्यूनतम)
जालौर जिले में कुल पशुधन – 16,31,175 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
जालौर जिले में कुल पशु घनत्व – 153 (LIVESTOCK DENSITY (PER SQ. KM.))
नोट — राजस्थान में न्यूनतम महिला साक्षरता जालौर की है। परन्तु जनगणना 2011 में जालौर जिले की महिला साक्षरता में पुरुषों की अपेक्षा अधिक वृद्धि हुई है। महिला साक्षरता दर वर्ष 2001 में 27.8 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 38.5 प्रतिशत हो गई।
जालौर का ऐतिहासिक विवरण —
जालौर का प्राचीन नाम-जबालिपुर था। जाबालिपुर नाम महर्षि ”जाबालि” की तपोभूमि होने के कारण कहा जाता है।
कहा जाता है कि जालौर का नामकरण यहां पर ”जाल” वृक्षों की अधिकता के कारण किया गया।
सन् 1182 में कीर्तिपाल चौहान ने जालौर में चौहान वंश की स्थापना की। कीर्तिपाल चौहार को ”कित्तु एक महान राजा” की उपाधि मुहणोत नेणसी ने दी।
अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर का नाम जलालाबाद रखा।
जालौर की नदियां एवं जलाशय—
जालौर में बहने वाली प्रमुख नदियाँ – लूणी, जवाई, सूकड़ी है।
बांकली बाँध सूकड़ी नदी पर सन् 1956 ई. में बनाया गया।
जालौर के अन्य जलाशय —
बीथान जलाशय जालौर में है।
नर्मदा नहर परियोजना से राजस्थान में पानी 27 मार्च, 2008 को सीलू गाँव (जालौर) में आया। यह नहर सीलू गाँव से ही राजस्थान में प्रवेश करती है।
राज्य में पहली बार नर्मदा नहर परियोजना पर फव्वारा सिंचाई पद्धति को अनिवार्य रूप से लागू किया गया।
जालौर के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल —
जालौर दुर्ग—
उपनाम-सोनगिरी/सुवर्णगिरी/कांचनगिरी/सोनलगढ़/जालधर दुर्ग/जलालाबाद दुर्ग आदि।
यह दुर्ग सूकड़ी नदी के समीप कनकाचल पहाड़ी पर बना हुआ है। यह दुर्ग पश्चिमी राजस्थान का सबसे प्राचीन व सबसे सुदृढ़ दुर्ग है।
इसके बारे में हसन निजामी ने कहा है, कि यह एक ऐसा किला है, जिसका दरवाजा कोई भी आक्रमणकारी खोल नहीं सका।
इसका निर्माण औझा के अनुसार परमारों ने जबकि दशरथ शर्मा के अनुसार प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम द्वारा करवाया गया।
10वीं शताब्दी में धारावर्ष परमार द्वारा इसका पुन: निर्माण करवाया गया।
इस दुर्ग में चामुण्डा माता व जौगमाया माता का मन्दिर स्थित है।
मल्लिक शाह व अलाउद्दीन खिलजी की मस्जिद इसी दुर्ग में है।
इस दुर्ग में परमार कालीन कीर्ति स्तम्भ स्थित है।
साका—1311 ई. अलाउद्दीन खिलजी की सेना व कान्हड़देव के मध्य दहिया बीका के विश्वासघात के कारण कान्हड़देव ने केसरिया किया एवं उसकी रानी जैतल दे ने जौहर किया।
जालौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी के हमले का कारण—कान्हड़देव के पुत्र वीरमदेव से अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा प्यार करती थी, लेकिन वीरमदेव उसे नहीं चाहता था। इसे अलाउद्दीन ने अपना अपमान समझा। वीरमदेव ने आशापुरा माता के मन्दिर के सामने आत्महत्या कर ली, खिलजी का सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग वीरमदेव की गर्दन काटकर फिरोजा के पास ले गया फिरोजा उस गर्दन के साथ यमुना में कूद गई।
जालौर दुर्ग के बारे में कहा जाता है—”राई के भाव रातों ही गये”।
सुंधामाता का मन्दिर—दांतलावास, जालौर। इस माता के मन्दिर में चामुण्डा माता की प्रतिमा है। यह प्रतिमा अघटेश्वर के रूप में अर्थात् धड़ रहित केवल सिर की पूजा की जाती है। इस माता के मन्दिर में पहली बार रोप वे (दिसम्बर 2006) लगा था। यह राजस्थान का प्रथम रोप वे है।
राजस्थान का पहला ‘भालू अभयारण’ जसवन्तपुरा क्षेत्र के सुन्धा माता के नजदीक जालौर में है। इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 4468.42 वर्ग किलोमीटर है।
माँ आशापुरा का मंदिर—उपनाम—महोदरी माता। सोनगरा चौहानों की कुल देवी आशापुरा माँ का मंदिर मोदराँ रेलवे स्टेशन के नजदीक है।
फता जी का मंदिर—सांथू (जालौर), फताजी ने अपने गाँव की मान मर्यादा हेतु प्राणों को न्यौछावर किया। फताजी का मेला—भाद्रपद शुक्ल नवमी को लगता है।
ऑपेश्वर महादेव मन्दिर—रामसीन नामक स्थान पर। इस मंदिर का प्राचीन नाम अपराजितेश्वर शिव मंदिर था। यहाँ पर राजस्थान का पहला श्वेत स्फटिक (काँच से निर्मित) शिवलिंग है।
सिरे मंदिर—यह जालन्धर नाथ की तपोभूमि है। इसका निर्माण जोधपुर के राजा मानसिंह ने करवाया।
तोप मस्जिद—अलाउद्दीन द्वारा जालौर विजय के उपलक्ष में राजा भोज द्वारा बनवाई गई, कण्ठा भरण पाठशाला के स्थान पर।
जालौर के महत्त्वपूर्ण तथ्य —
ढ़ोल नृत्य—पुरुषों द्वारा जालौर में किया जाता है। यह नृत्य थिरकना शैली में मांगलिक अवसरों पर होता है, इस नृत्य को प्रकाश में लाने का श्रेय जयनारायण व्यास को जाता है। इस नृत्य के वाद्य यन्त्र ढोल व थाली होते हैं।
लुंबर नृत्य—जालौर में होली के अवसर पर।
सेवडिय़ा पशु मेला-रानीवाड़ा (जालौर) — इस पशु मेले का आयोजन चैत्र शुक्ल 11 से पूर्णिमा तक किया जाता है। इस मेले में कांकरेज नस्ल के बैल व मूर्रा नस्ल की भैंसों का क्रय-विक्रय होता है। इस मेले में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात आदि राज्यों के व्यापारी हिस्सा लेते हैं।
अन्य मेलों में शिवरात्रि मेला, आशापुरी माता जी का मेला, शीतला माता का मेला, सुन्धा माता का मेला तथा पीरजी का उर्स आदि जालौर के प्रमुख मेलें है।
भीनमाल का वराह श्याम का मंदिर — भारत के अति प्राचीन गिने-चुने वराह मन्दिरों में से एक है। इसमें भगवान श्याम की चतुर्भुज मूर्तियां पुरातात्विक महत्व की है।
नन्दीश्वर तीर्थ — जालौर कचहरी परिसर में अवस्थित इस मन्दिर में बना कीर्ति स्तम्भ कलात्मक दृष्टि से अनूठा है।
सूर्य मन्दिर — भीनमाल स्थित प्राचीन सूर्य मन्दिर (जगत स्वामी) राजपूताने के प्राचीन सूर्य मन्दिरों में से एक प्रसिद्ध मन्दिर है। इसे स्थानीय भाषा में जगमडेरा कहते है।
संस्कृत साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान ‘शिशुपालवध’ के रचयिता महाकवि माघ भीनमाल (जालौर) निवासी थे।
9 फरवरी, 2009 को डाक विभाग की ओर से महाकवि माघ पर भीनमाल (जालौर) में डाक टिकट का विमोचन कर जारी किया गया।
‘स्फूट ब्रह्मा सिद्धान्त’ के रचयिता, प्रसिद्ध ज्योतिष ‘ब्रह्मगुप्त’ भी भीनमाल के थे।
राजस्थान का पंजाब-सांचोर (जालौर) । सांचौर का प्राचीन नाम सत्यपुर है।
राज्य का प्रथम गौ मूत्र बैंक-सांचोर (जालौर)।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7 वीं सदी में भीनमाल की यात्रा की थी। ह्वेन सांग ने अपने यात्रा वृतांत में भीनमाल का गुर्ज्जरत्रा देश की राजधानी के रूप में उल्लेख किया है।
राज्य की सबसे बड़ी दूध डेयरी-रानीवाड़ा (जालौर)।
खेसला उद्योग हेतु प्रसिद्ध —लेटा (जालौर)।
राजस्थान में गुलाबी रंग का ग्रेनाइट जालौर में मिलता है। जालौर को ग्रेनाइट सिटी भी कहा जाता है।
पीले ग्रेनाइट के भण्डार-नसौली (जालौर) में 14 जनवरी 2004 को मिले है।
जालौर प्राचीन व मध्यकालीन काष्ठ कला की कृतियों एवं ग्रेनाइट घड़ी निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।
राष्ट्रीय कामधेनु विश्वविद्यालय-पथमेड़ा (जालौर)।
सांचौर की गायें अपनी विशिष्ट नस्ल और दुग्ध उत्पादकता के लिए प्रसिद्ध हैं।
ईसबगोल (घोड़ा-जीरा) मण्डी-भीनमाल (जालौर)। जालौर, ईसबगोल व टमाटर की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
जीरे का सर्वाधिक उत्पादक जिला जालौर है।
जालौर में बेदाना अनार की खेती भी की जाती है।
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