Bhilwara District GK in Hindi

भीलवाड़ा जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)

(Bhilwara District GK/Bhilwara Jila Darshan)

भीलवाड़ा के उपनाम – वस्त्र नगरी, अभ्रक नगरी, राजस्थान का मेनचेस्टर, टैक्सटाइल शहर आदि नामों से जाना जाता है।

भीलवाड़ा का नामकरण – यहाँ पर सिक्के ढ़ालने की टकसाल थी जिसमें ‘भिलाड़ी’ नामक सिक्के ढ़ाले जाते थे इसलिए इस क्षेत्र का नाम ‘भीलवाड़ा’ पड़ा। 

भीलवाड़ा का क्षेत्रफल – 10,455 वर्ग किलोमीटर है।

भीलवाड़ा की मानचित्र स्थिति – 25°1′ से 25°58′ उत्तरी अक्षांश से 74°1′ से 75°28′ पूर्वी देशान्तार।

भीलवाड़ा की सीमा से सटे जिले – उत्तर में अजमेर जिला, पूर्व में बूंदी व टोंक जिलें, पश्चिम में राजसमंद जिला तथा दक्षिण में चित्तौड़गढ़ जिला। 

राजस्थान का भीलवाड़ा जिला ‘आयताकार’ आकृति का है।

2011 की जनगणना के अनुसार भीलवाड़ा की जनसंख्या के आंकड़े –

कुल जनसंख्या—24,08,523         पुरुष—12,20,736

महिला—11,87,737                     दशकीय वृद्धि दर—19.2%

लिंगानुपात—973                         जनसंख्या घनत्व—230

साक्षरता दर—62.71%                 पुरुष साक्षरता—75.3%

महिला साक्षरता—47.2%

भीलवाड़ा में कुल पशुधन – 24,45,292 (Bhilwara LIVESTOCK CENSUS 2012)

भीलवाड़ा में पशु घनत्व – 234 (Bhilwara LIVESTOCK DENSITY(PER SQ. KM.))

भीलवाड़ा में कुल विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 7 (सात) है –

1. माण्डल              2. सहाड़ा

3. भीलवाड़ा           4. शाहपुरा

5. जहाजपुर           6. माण्डलगढ़

7. आसीन्द

भीलवाड़ा में बहने वाली नदियाँ →

मेनाल नदी- यह भीलवाड़ा में माण्डलगढ़ की पहाड़ियों से निकलकर बींगोद नामक स्थान पर बनास नदी में मिलकर बेड़च-मेनाल व बनास का त्रिवेणी संगम बनाती है। मेनाल नदी पर माण्डलगढ़ के समीप मेनाल जल प्रपात है।

मानसी नदी- यह नदी माण्डलगढ़ के समीप करणगढ़ नामक स्थान से निकलती है तथा अजमेर की सीमा रेखा पर फूलियाँ की ढ़ाणी नामक स्थान पर खारी नदी में मिल जाती है। मानसी नदी पर अड़वान बाँध बना हुआ है।

मेज नदी – इस नदी का उद्गम भीलवाड़ा में के बिजौलिया के निकट से होता है। यह नदी भीलवाडा जिले से बहकर कोटा व बूंदी की सीमा पर चंबल में मिल जाती है। इसकी सहायक नदियां है – बाजन, कुराल व मांगली प्रमुख है।

मांगली नदी – यह नदी मेज की सबसे बड़ी सहायक नदी है। इस का उद्गम बूंदी की तालेरा तहसील से होता है। यह बाइंस खेरा स्थाडन के पास मेज नदी में मिल जाती है। मांगली नदी पर भीमलत जलप्रपात स्थित है। इसकी सहायक नदी घोड़ा-पछाड़ नदी है।

घोड़ा पछाड़ नदी – इस नदी का उद्गम बिजौलिया झील से होता है। यह सांगवाड़ा के पास मांगली नदी में मिल जाती है। घोड़ा पछाड़ नदी पर गरदड़ा नामक स्थाहन पर एक बांध बना हुआ है।

भीलवाड़ा में बहने वाली अन्य नदियाँ – बनास नदी, बेड़च नदी, खारी नदी, कोठारी नदी।

भीलवाड़ा के जलाशय – तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई भीलवाड़ा में की जाती है।

मेजा बाँध – कोठारी नदी पर स्थित है। मेजा बाँध की पाल पर मेजा पार्क बना है, जिसे ग्रीन माउण्ट कहा जाता है।

अन्य बाँध – सरेरी, उर्मिला सागर, अड़वान बाँध, खारी बाँध।

भीलवाड़ा से प्राप्त खनिज →

अभ्रक – छापरी, दांता, भूणास, बनेड़ी। राजस्थाeन का सर्वाधिक अभ्रक उत्पाेदक जिले भीलवाड़ा तथा उदयपुर है। भीलवाड़ा में अभ्रक की ईंटें भी बनाई जाती है।

भाड़ेल (अभ्रक) की छपाई – भीलवाड़ा में होती है।

सीसा-जस्ता – रामपुरा-अंगुचा (1982 के बाद से दोहन आरंभ)

फेल्सपार – मांडल, आसींद।

घीया पत्थर – घेवरिया चाँदपुर।

भीलवाड़ा के चर्चित व्यक्तित्व →

विजय सिंह पथिक—बिजौलिया किसान आन्दोलन के जनक। 1917 में उपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना। (इनका जन्म गुठावली गाँव-बुलन्द शहर, उत्तरप्रदेश में हुआ)

केसरी सिंह बारहठ—21 नवम्बर 1872 को शाहपुरा में जन्म। ”चेतावनी रा चुँगठिया” के लेखक – वर्ष 1903 में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा आयोजित ‘दिल्ली दरबार’ में सभी राजाओं के साथ मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के जागीरदार क्रान्तिकारियों को उचित नहीं लग रहा था। अतः उन्हें रोकने के लिये शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूरसिंह ने ठाकुर करण सिंह जोबनेर व राव गोपाल सिंह खरवा के साथ मिलकर महाराणा फ़तेह सिंह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह बारहट को दी। केसरी सिंह ने “चेतावनी रा चुंग्ट्या” नामक सोरठे रचे, जिन्हें पढ़कर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए और ‘दिल्ली दरबार’ में न जाने का निश्चय किया। सन 1920-21 में वर्धा में केसरी जी के नाम से ‘राजस्थान केसरी’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया गया था, जिसके संपादक विजय सिंह पथिक थे। वर्धा में ही उनका महात्मा गाँधी से घनिष्ठ संपर्क हुआ। शाहपुरा बस स्टैण्ड पर केसरीसिंह, जोरावरसिंह, प्रतापसिंह बारहठ का त्रिमूर्ति स्मारक है।

माणिक्य लाल वर्मा—जन्म-बिजौलिया। इनका ‘पंछीड़ा’ नामक लोकगीत बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्होंने ‘मेवाड़ का वर्तमान शासन’ नामक पुस्तक लिखी। संयुक्त राजस्थान (एकीकरण का तृतीय चरण 18 अप्रैल, 1948) के मुख्यमंत्री। माणिक्यलाल वर्मा को समाज सेवा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1965 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

अभिजीत गुप्ता—सतरंज खिलाड़ी, राज्य के प्रथम एवं देश के 17 वें ग्रैण्डत मास्टर बने है। इनका जन्मम 16 अक्टू बर 1989 को भीलवाड़ा में हुआ।

जानकीलाल भांड—अंगुचा (भीलवाड़ा) के निवासी प्रसिद्ध बहरूपिया कलाकार, जिन्हें ‘मंकी मैन’ के नाम से जाना जाता है।

कैलाश जागेटिया—क्लोथ आर्ट के जन्मदाता।

फड़ चित्रण-शाहपुरा (भीलवाड़ा) पद्मश्री से सम्मानित श्रीलाल जोशी प्रसिद्ध कलाकार हैं।

भीलवाड़ा के दर्शनीय स्थल –

सवाई भोज मन्दिर—गुर्जरों के लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध देवनारायण जी का मन्दिर आसीन्द में है। देवनारायण जी के मन्दिर में मूर्ति के स्थान पर ईंट की पूजा नीम की पत्तियों द्वारा की जाती है। यहाँ पर भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को विशाल मेला भरता है। देवनारायण जी फड़ पर 1992 में 5 रु. का डाकटिकट जारी है। यह राजस्थान की सबसे प्राचीन, सबसे लम्बी तथा सबसे छोटी फड़, देवनारायण जी की है। इसको बांचने के लिए जन्तर वाद्य यन्त्र का प्रयोग होता है।

शाहपुरा—रामस्नेही सम्प्रदाय के संस्थापक रामचरण जी का निर्वाण स्थल। यहाँ पर चैत्र कृष्ण 2 से 5 तक फूलडोल उत्सव मनाया जाता है।

बागौर—कोठारी नदी के तट पर, यहाँ पर ‘महासतियों का टीला’ है। भारत की सबसे सम्पन्न पाषाण कालीन सभ्यता तथा यहाँ से पशुपालन के अवशेष मिले हैं।

बिजौलिया—किसान आन्दोलन का जन्म यहीं से हुआ। यहाँ पर प्रसिद्ध मंदाकिनी मंदिर है। हाल ही में यहाँ से प्राग्ऐतिहासिक काल के शैल चित्र प्राप्त हुए हैं।

तिलस्वाँ महादेव मन्दिर—माण्डलगढ़ के समीप इस स्थल पर शिवरात्री को मेला भरता है। तिलस्वां के जलकुण्ड चर्म रोग निवारण के लिए प्रसिद्ध है।

मांडलगढ़—जगन्नाथ कच्छवाहा की 32 खम्भों की छतरी स्थित है। महाराणा सांगा की छतरी भी यहीं है।

बिजौलिया शिलालेख—1170 ई. में प्राप्त इस शिलालेख में चौहानों को वत्स गौत्रीय ब्राह्मण बताया गया है। इसकी स्थापना ‘जैन श्रावक लोलाक’ ने की।

भीलवाड़ा के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य →

  • पूर्ण उत्तरदायी शासन स्थापित करने वाली पहली रियासत शाहपुरा थी, जिसने 14 अगस्त, 1947 को उत्तरदायी शासन की स्थापना की।
  • ऊपरमाल—भैंसरोगढ़ (चित्तौडगढ़) से लेकर बिजौलिया (भीलवाड़ा) तक का पठारी भाग ऊपरमाल कहलाता है।
  • भीलवाड़ा क्षेत्र में स्थित ‘जहाजपुर’ को महाभारत काल में खेराड़-प्रदेश कहा जाता था।
  • बागोर के निकट ‘कोठारी नदी’ के तट पर बसे गांव पुरातत्वn की दृष्टि से समृद्ध है।
  • कम्प्यूटर एडेड डिजाइन सेंटर भीलवाड़ा में है।
  • वनस्पति घी (1974 में स्थापित) फैक्ट्री भीलवाड़ा में है।
  • पहली महिला तकनीकी अधिकारी भीलवाड़ा की फ्लाइट लेफ्टीनेन्ट मोनिका बनी।
  • भीलवाड़ा जिले को टाउन ऑफ एक्सपोर्ट एक्सीलेंस का दर्जा मिला है।
  • बांका—राजस्थान की प्रथम अलंकृत गुफा मिली।
  • ओझियाणा—ताम्रयुगीन अवशेष, भारत में पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य यहीं से प्राप्त हुए हैं।
  • बनेड़ा दुर्ग, माण्डलगढ़ दुर्ग (त्रिवेणी संगम मर) भीलवाड़ा में है।
  • गूदड़ सम्प्रदाय की प्रधान पीठ दांतड़ा (भीलवाड़ा) में है।
  • धनोप माता का मंदिर शाहपुरा, भीलवाड़ा में है।
  • राजस्थान धरोहर संरक्षण की ओर से ‘टेम्पल विलेज’ के रूप में विकसित होने वाला गाँव-बघेरा गाँव भीलवाड़ा में है।
  • नाहर नृत्य माण्डलगढ़ का प्रसिद्ध जबकि स्वांग शाहपुरा का प्रसिद्ध है।
  • ईंट उद्योग में भीलवाड़ा सर्वाधिक विकसित जिला है। यहाँ पर अभ्रक की ईंटें बनाई जाती है तथा राजस्थान में अभ्रक मण्डी भी यहीं है।
  • ‘माच ख्याल’ के पितामह भीलवाड़ा निवासी बगसु लाल खमेसरा को कहा जाता है।
  • हमीरगढ़ → चित्तौड़गढ़ की सीमा पर राष्ट्री य राजमार्ग 8 पर स्थित, प्राचीन नाम बाकरोल।
  • नवीं और बारहवीं शताब्दीर के प्राचीन मंदिरों से भीलवाड़ा जिला परिपूर्ण है। बिजोलिया, तिरस्वां एवं माण्डलगढ़ मध्यचकालीन मन्दिर, कला एवं स्थापत्य के अनूठे नमूने हैं।
  • मांडल (भीलवाड़ा) में होली के तेरह दिन पश्चात् रंग तेरस पर आयोजित नाहर नृत्य के सम्बंध में कहा जाता है कि इसकी शुरुआत शाहजहाँ के शासनकाल में हुई।
  • सूलिया—12 दिसम्बर, 2006 को चाँवड़ा माता के मंदिर में दलितों ने सामाजिक कार्यकर्ता भोपे हजारी के नेतृत्व में प्रवेश किया। इसमें अरूणा राय (सूचना अधिकार दिलाने वाली) ने भी हिस्सा लिया।
  • केन्द्र सरकार ने 26 फरवरी, 2009 को कपड़ा निर्यातक शहर का दर्जा दिया।
  • भीलवाड़ा का सूती वस्त्र उद्योग प्रमुख है। यहाँ पर मेवाड़ टैक्सटाइल्स मिल लिमिटेड की स्थापना 1938 में हुई।
  • 1965 में गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ‘राजस्थान सहकारी कताई मिल एवं 1981 में गंगापुर (भीलवाड़ा) में ‘गंगापुर सहकारी कताई मिल’ की स्थापना की।
  • नांदणे (घाघरे की छपी फड़)-भीलवाड़ा।

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