बाड़मेर जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
(Barmer District GK/Badmer Zila Darshan)
बाड़मेर जिले के उपनाम → बाड़मेर को मालानी, श्रीमाल, किरात कूप, शिवकूप तथा कला व हस्तशिल्प का सिरमौर कहा जाता है।
बाड़मेर का क्षेत्रफल – 28,387 वर्ग किलोमीटर
बाड़मेर का नगरीय क्षेत्रफल – 45.01 वर्ग किलोमीटर
बाड़मेर का ग्रामीण क्षेत्रफल – 28,341.99 वर्ग किलोमीटर
बाड़मेर की मानचित्र स्थिति – 24°58′ से 26°32′ उत्तरी अक्षांश तथा 70°5′ से 72°52′ पूर्वी देशान्तर
- बाड़मेर राजस्थान के पश्चिम में स्थित है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय (पाकिस्तान) व अन्तर्राज्यीय (गुजरात से) दोनों प्रकार की सीमाएँ लगती है।
- रेडक्लिफ रेखा राज्य के दक्षिण पश्चिम में बाड़मेर के बाखासर गांव (शाहगढ़) तक विस्तृत है। रेडक्लिफ रेखा की बाड़मेर से 228 कि.मी. सीमा लगती है।
- बाड़मेर राजस्थान का वह जिला जो किसी भी अन्य राज्य के साथ सबसे कम अन्तर्राज्यीय सीमा बनाता है।
बाड़मेर में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 7 है, जो निम्न, हैं –
1. शिव 2. बाड़मेर
3. बायतू 4. पचपदरा
5. सिवाणा 6. गुढ़ामलानी
7. चौहटन
बाड़मेर में उपखण्डों की संख्या – 4
बाड़मेर में तहसीलों की संख्या – 8
बाड़मेर में उपतहसीलों की संख्या – 5
बाड़मेर में ग्राम पंचायतों की संख्या – 384
2011 की जनगणना के अनुसार बाड़मेर की जनसंख्या के आंकड़े –
कुल जनसंख्या—26,03,751 पुरुष—13, 69,022
स्त्री—12,34,729 दशकीय वृद्धि दर—32.5
लिंगानुपात—902 जनसंख्या घनत्व—92
साक्षरता दर—56.5% पुरुष साक्षरता—70.9%
महिला साक्षरता—40.6%
बाड़मेर में कुल पशुधन – 5366732 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
बाड़मेर में पशुघनत्व – 189 → LIVESTOCK DENSITY (PER SQ. KM.)
बाड़मेर में कुल वन क्षेत्र – 592.28 वर्ग किलोमीटर है।
बाड़मेर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि →
परमार राजा धरणीधर के पुत्र बाहदा राव जिसे बहाड़ राव भी कहा जाता है, ने 13वीं शताब्दी में बाड़मेर नगर बसाया। बाड़मेर का नाम भी इन्हीं के बनाये हुए किले के नाम पर पड़ा, बाड़मेर यानि बाड़ का पहाड़ी किला।
बाड़मेर के जल स्रोत/नदियां –
लूनी नदी – लूनी नदी यहाँ की प्रमुख नदी है, इसकी सहायक-सूकड़ी एवं मीठड़ी नदियां हैं। लूनी नदी अजमेर के नाग पहाड़-पहाड़ियों से निकलकर नागौर की ओर बहती है। लूनी नदी अजमेर से निकलकर नागौर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर और जालौर में बहती हुई, गुजरात में प्रवेश करती है। लूनी नदी राजस्थान के छ: जिलों में बहती है। अंत में कच्छ की खाड़ी में गिर जाती है। लूनी नदी की कुल लंबाई 320 किलोमीटर है। लूनी नदी पूर्णत: मौसमी नदी है। बालोतरा (बाड़मेर) तक इसका जल मीठा रहता है तथा इसके आगे जाकर यह खारा होता जाता है। नाकोड़ा बाँध-लूनी नदी पर हैं। लूनी एक मरुस्थलीय नदी है जो ‘लवण नदी’ के नाम से भी प्रसिद्ध है।
पंचपद्रा झील/पंचभद्रा झील – यह खारे पानी की झील है। इस झील में खारवाल जाति के लोग मोरली झाड़ी के द्वारा नमक के स्फटिक बनाते हैं। इस झील का नमक राजस्थान में सर्वश्रेष्ठ नमक है तथा इस झील का नमक समुद्र के नमक से मिलता-जुलता है। इस झील के नमक में 98% NaCl है, तथा पंचभद्रा झील का नमक वर्षा पर निर्भर नहीं है, क्योंकि इस झील में पर्याप्त मात्रा में स्थानीय भू-गर्भिक जल की प्राप्ति हो जाती है।
जल परियोजना →
इंदिरा गाँधी नहर परियोजना—इसका अंतिम बिन्दु गडरा रोड़ बाड़मेर जिले में है। लिफ्ट नहर—बाबा रामदेव लिफ्ट नहर।
नर्मदा नहर परियोजना—जालौर व बाड़मेर में सिंचाई हेतु प्रयुक्त।
ऊर्जा संसाधन→
पेट्रोल—बाड़मेर के बायल क्षेत्र के जोगासंरिया गाँव, बोधिया गाँव, चूनावाला और मग्गा की ढ़ाणी ।
प्रमुख तेल के कुएँ—मंगला-I, भाग्यम, ऐश्वर्या, रागेश्वरी।
बाड़मेर में रिफाइनरी—बाड़मेर के पंचपदरा के साजियावली गाँव में सितम्बर 2013 में सोनिया गाँधी ने रिफाइनरी एवं पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स का शिलान्यास किया था।
राजस्थान राज्य का प्रथम लिग्नाइट कोयला आधारित विद्युत संयंत्र गिरल, बाड़मेर में है।
पेट्रोल की हीटेड पाइपलाइन नगाणा गाँव में मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल से सलाया (गुजरात) तक बिछाई जाने वाली पाइपलाइन का उद्घाटन 4 फरवरी 2010 को हुआ था।
बाड़मेर के महत्त्वपूर्ण स्थल →
बाटाडू का कुआँ—बायतु पंचायत समिति के बाटाडू गाँव में बना यह संगमरमर निर्मित कुआँ है। इस कुएँ को ‘रेगिस्तान का जलमहल’ कहा जाता है।
माँ नागणेची का मन्दिर—नागोणा गाँव में स्थित माँ नागणेची राठौडों की कुल देवी है। यहाँ देवी की प्रतिमा लकड़ी से निर्मित है।
सिवाणा दुर्ग—छप्पन की पहाड़ियों की हल्देश्वर पहाड़ी पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण पंवार राजा भोज के पुत्र वीर नारायण ने 1011 ई. में करवाया। इस दुर्ग में जयनारायण व्यास को बंदी बनाकर रखा गया। इसे ”कूमट दुर्ग” व ”मारवाड़ के शासकों की शरण स्थली” भी कहते हैं।
सिवाणा दुर्ग के साके—1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की सेना के सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग ने सिवाणा दुर्ग को घेर लिया एवं सिवाणा दुर्ग के राजा शीतल देव के विश्वासघाती सेनापति भावला को अपनी ओर मिलाकर आक्रमण किया जिसके कारण शीतलदेव युद्ध में मारा गया एवं उसकी पत्नी मैणा दे ने जौहर किया। अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग का नाम बदलकर खैराबाद रख दिया। दूसरा साका 1582 में हुआ।
कोटड़ा का किला बाड़मेर में है।
किराडू—”राजस्थान का खजुराहो” किराडू का प्राचीन नाम-किरातकूप था। किराडू के मन्दिर हाथमा गाँव में है। यहाँ का प्रसिद्ध मन्दिर सोमेश्वर शिव मन्दिर है, जो प्रतिहार शैली का अन्तिम व भव्य मन्दिर है।
मेवानगर/नाकोड़ा के जैन मन्दिर—यहाँ 23वें जैन तीर्थकर भगवान पार्श्वरनाथ की प्रतिमा है। यहां पर पौष बदी दशमी को विशाल मेला भरता है।
राष्ट्रीय मरू उद्यान – जैसलमेर व बाड़मेर में विस्तृित है। इसे 4 अगस्त, 1980 को वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया गया। राष्ट्रीय मरु उद्यान क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा अभयारण्य है। राष्ट्रीय मरु उद्यान का कुल क्षेत्रफल 3,162 वर्ग किलोमीटर है जिसमें से बाड़मेर में 1,262 वर्ग किलोमीटर तथा जैसलमेर में 1,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में आता है। लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (सोन चिरैया/गोडावण) इस उद्यान में अच्छी खासी संख्या में मौजूद हैं। यह उद्यान 18 करोड़ वर्ष पुराने जानवरों और पौधों के जीवाश्म का एक संग्रह है। इस क्षेत्र में डायनोसोर के कुछ जीवाश्म तो ऐसे पाये गये हैं जो 60 लाख साल पुराने हैं।
विरात्रा माता/वांकलमाता—चौहटन, यह माता भोपों की कुल देवी है।
शिव मुण्डी महादेव मन्दिर—बाड़मेर शहर के पास सुरम्य पहाडिय़ों की सबसे ऊँची चोटी पर यह मंदिर बना हुआ है। इस पहाड़ी से बाड़मेर शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
सोहननाड़ी ताल—सुरम्य पहाडिय़ों के मध्य में स्थित प्राचीन ताल सोहननाड़ी का निर्माण बाड़मेर की स्थापना के साथ ही करवाया था, जो पूर्व में नगरीय जनजीव के लिए पानी का एकमात्र स्त्रोत था।
ब्रह्मा जी का दूसरा मन्दिर आसोतरा में है। माना जाता है कि यह एकमात्र ऐसा मन्दिर है, जिसमें सावित्री के साथ ब्रह्मा की मूर्ति है।
मल्लीनाथ पशुमेला—यह मेला चैत्र कृष्ण ग्यारस (एकादशी) से चैत्र शुक्ल ग्यारस तक तिलवाड़ा बाड़मेर में लूणी नदी के किनारे भरता है, यहाँ मल्लीनाथ का समाधि स्थल है। यह मेला राजस्थान का सबसे प्राचीन पशुमेला है। इस मेले में थारपारकर एवं कांकरेज नस्ल के गौवंश सर्वाधिक क्रय-विक्रय होते हैं।
विशेष-(i) मालाणी नस्ल के घोड़े सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है।
(ii) बाड़मेर में आलम जी का धोरा घोडिय़ों के प्रजनन हेतु विश्व-प्रसिद्ध है। उपनाम-घोड़ों का तीर्थस्थल।
बालोतरा—रंगाई-छपाई तथा बंधेज के लिए प्रसिद्ध। बालोतरा का मिट्टी पर दाबू प्रसिद्ध है।
चौहटन—यहाँ चार वर्षों के अन्तराल के बाद पौष माह की सोमवती अमावस्या को सुईयां का मेला भरता है जिसे अर्द्धकुम्भ की मान्यता प्राप्त है तथा चौहटन गौंद उत्पादन के लिए भी प्रसिद्ध है।
जसोल—रानी भटियाणी का मेला भरता है।
जालीपा-कपूरड़ी—निजी क्षेत्र पर आधारित राज्य का प्रथम बिजलीघर। यह लिग्नाइट कोयले से चलता है।
कोसलू होडू—इस स्थान पर गहराई में दबे लिग्नाइट कोयले को ‘यूजीसी’ पद्धति से निकाला जाएगा। सम्पूर्ण भारत में UGC पद्धति के माध्यम से लिग्नाइट दोहन का यह प्रथम प्रयोग है।
बाड़मेर के प्रसिद्ध व्यक्तित्व –
जसवंत सिंह—पूर्व सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह जसोल के हैं। इन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम ”जिन्ना भारत विभाजन के आइने में” है।
लेफ्टीनेंट कर्नल हणूत सिंह—1971 के महावीर चक्र विजेता।
महाराजा खंगारमल—प्रसिद्ध खड़ताल वादक। 26 जनवरी, 2009 को पदम्भूषण से अलंकृत।
डॉ. महावीर गोलेच्छा—विश्व के सर्वश्रेष्ठ 25 न्यूरोलोजिस्ट में शामिल। राष्ट्रपति युवा वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित है।
बाड़मेर के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य →
अजरक प्रिंट व मलीर प्रिन्ट—बाड़मेर की अजरक प्रिंट व मलीर प्रिन्ट प्रसिद्ध है। अजरक प्रिंट कला में कपड़े के दोनों तरफ प्रिंट आता है।
पाकिस्तान के नजदीक का रेलवे प्लेटफॉर्म मुनाबाव है, जो बाड़मेर में हैं। यह स्टेशन पाकिस्तान के खोखरापार को जोड़ता है। मुनाबाव शुल्क मुक्त शराब के लिए जाना जाता है।
बाड़मेर के मुनाबाव से पाकिस्तान के खोखरापार के बीच चलाई गई ट्रेन थार एक्सप्रेस है। यह ट्रेन 18 फरवरी, 2006 को चलाई गई।
राजस्थान में पशु संपदा के मामले में बाड़मेर प्रथम स्थान रखता है। इनमें बकरी, भेड़, ऊट, गधे व घोड़े सबसे अधिक है।
बाड़मेर में पेयजल की समस्या के निस्तारण हेतु ‘सुजलम परियोजना’ चलाई जा रही है।
भारत का दूसरा रिसर्च डिजाइन सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन बाड़मेर में स्थापित किया गया है।
देश की पहली ओरण पंचायत-‘ढ़ोक’ बाड़मेर में है।
हापाकोट—बिशन पगलिया (पवित्र स्थान) के पहाड़ों पर 14वीं सदी के एक दुर्ग के अवशेष है, जिसे हापाकोट कहते हैं।
समदड़ी गाँव में संत पीपा का मंदिर है, जहाँ पर चैत्र पूर्णिमा को मेला भरता है।
प्रसिद्ध लोकदेवता रामदेवजी का जन्म बाड़मेर जिले की शिव तहसील के उडूकाश्मेरु गाँव में हुआ। (1409 वि. स.)
बालोतरा में टैक्सटाइल पार्क है।
पत्थर मार होली बाड़मेर की प्रसिद्ध है।
बाड़मेर में शीतलाष्टमी को थार समारोह का आयोजन होता है।
बाड़मेर जिले का चौहटन क्षेत्र गोंद के लिए प्रसिद्ध है।
पीपलूद-बाड़मेर ”मारवाड़ का लघु माउण्ट” कहलाता है। इसे राजस्थान का लघु/दूसरा माउण्ट आबू भी कह सकते हैं।
कपालेश्वर महादेव के मंदिर से मेला प्रत्येक बाहरवें वर्ष में भरता है। जिसे कुंभ मेले का लघु मरुस्थलीय रूप समझा जाता है।
बाड़मेर में जनवरी 2009 में मिले तेल के कुएँ का नामकरण मुम्बई हमले में शहीद पुलिस उपनिरीक्षक तुकाराम ओमले के नाम पर किया गया है।
सजियावली एवं बैरी—यहाँ सौर ऊर्जा से संचालित खारे पानी को मीठे पानी में बदलने वाले जल पिरामिड का निर्माण किया गया है।
बकरी के बालों से जट पट्टियों की बुनाई का मुख्य केन्द्र जसोल (बाड़मेर) में है।
नाकोड़ा पर्वत/छप्पन की पहाड़ियां – बाड़मेर के सिवाणा ग्रेनाइट पर्वतीय क्षेत्र में स्थित गोलाकार पहाड़ीयों का समूह नकोड़ा पर्वत या छप्पन की पहाड़ीयां कहलाता है। ये समुद्रतल से 3727 फीट ऊँची है।
Bardmer/Barmer District GK(General Knowledge) in Hindi
(बाड़मेर का सामान्य ज्ञान, राजस्थांन के जिलों का सामान्य ज्ञान)
Barker is a super place