राजस्थान के इतिहास को जानने के स्रोत

राजस्थान के इतिहास को जानने के स्रोत

पुरातात्त्विक सामग्री

  • राजस्थान के इतिहास के अध्ययन के लिए सर्वाधिक प्रमाणिक साक्ष्यों में पुरातात्त्विक सामग्री महत्त्वपूर्ण है।
  • पुरातात्त्विक सामग्री के उत्खनन व संग्रहण करने के बाद अध्ययन व प्रकाशन का कार्य ”भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग” द्वारा किया जाता है।
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1861 ई. में अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी।
  • राजस्थान में पुरातात्त्विक सर्वेक्षण का कार्य सर्वप्रथम ए. कार्लाइल द्वारा 1871 ई. में किया गया तथा बाद में 1902 ई. में जॉन मार्शल द्वारा किया गया।

महत्त्वपूर्ण अभिलेख एवं प्रशस्तियाँ–

  • इतिहास को जानने में शिलालेख व अभिलेख महत्त्वपूर्ण एवं प्रमाणिक होते हैं।
  • शिलालेख व अभिलेख तिथि-युक्त एवं समसामयिक होते हैं।
  • आहड़ के दो शिलालेखों में ‘देवकुलिका लेख’ व ‘भक्तिकुमार का अभिलेख’ है जिनको कर्नल जेम्स टॉड़ इंग्लैंड ले गया।
  • बीकानेर के धातु विज्ञान अभिलेखों में तांबा निकालने व धातुओं से हथियार बनाने की कला की जानकारी मिलती है।
  • बीकानेर अभिलेखों में लाणी नामक पौधे से रासायनिक क्रिया द्वारा साजी क्षार के उत्पादन का उल्लेख मिलता है।

शिलालेख/अभिलेख –

         पत्थर की शिलाओं, दीवारों, स्तंभों आदि पर किसी भी प्रकार की जानकारी लिखी हुई मिलती हैं, उन्हें शिलालेख कहते है। शिलालेख पर किसी शासक की उपलब्धियों का यशोगान मिलता है, तो उसे प्रशस्ति कहते हैं। भारत में पहली बार शिलालेख ईरानी राजा दारा प्रथम की प्रेरणा से महान मौर्य शासक अशोक ने लगाये थे। अशोक के शिलालेख एकाश्‍म थे। अभिलेखों का अध्ययन ’’एपिग्राफिक’’ कहलाता। भारत में संस्कृत भाषा का प्रथम अभिलेख शक शासक रूद्रदामन का गुजरात से जूनागढ़ अभिलेख मिला है। अशोक के शिलालेखों में चार लिपियां थी – ब्राह्मी, खरोष्ठी, अरेमाईक, यूनानी। राजस्थान के शिलालेखों में संस्कृत व राजस्थानी भाषा मिलती है।

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One thought on “राजस्थान के इतिहास को जानने के स्रोत”

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