राजस्थानी कहावतें
अकल मोटी कै भैंस — शारीरिक बल से बौद्धिक बल अधिक बड़ा होता है।
अंक आंख रो के मीं चै के उघाड़ै — दूसरा कोई विकल्प न होना।
दाब्यों बाणियों पूरों तोलै — स्वार्थी और मजबूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी कर देता है।
आंधी पीसै कुत्ता खाय — बेबस की कमाई दूसरे ही खाते है।
आंधै नै के चाईजै — इच्छित वस्तु की प्राप्ति होना।
आंधां में काणो राजा — अज्ञानियों में अल्पज्ञ भी बुद्धिमान माना जाता है।
आंधै आगै ढोल बाजै डमडम बंयरी होरी है — अपात्र को कुछ भी कहने से लाभ नहीं।
हिवै रो आंधो अर गांठ रो साचो — मूर्ख किंतु संपन्न व्यक्ति।
आंधै रै तळै बुट बड़ दबरी है — बिना मेहनत के ही उपलब्धि प्राप्त होना।
अंधेर नगरी चौपट राजा — कुप्रशासन और अजागरूकता।
आप आपरी डफली अर आप आप रो राग — अपनी मनमानी करना और एक दूसरे के साथ तालमेल न बनाये रखना।
आपरी घुरी में कुत्तो भी शेर होवै — अपने घर में सब बलवान होते हैं।
बीन रै मुंडे ल्याळपड़े जानी के करै — स्वयं में ही खोट हो तो दूसरों को क्या दोष।
इनै पडू तो कुओं अनै पडूं तो खाड — दोनों ओर संकट।
चिणां साथे घुण भी पीसीजै — दोषी की संगति से निर्दोष भी मारा जाता है।
पाडियै सूं पड्या तो परिड़ पर आ पड़या — एक विपत्ति से पिण्ड छूटा तो दूसरी आ गई।
आं तिलां में तेल कोनी — किसी भी तरह के लाभ की संभावना न होना।
ऊंट रै मुंडे मे जीरो — आवश्यकता की तुलना में बहुत कम पूर्ति करना।
ऊंट री चारी अर कोड़े-कोड़े — गुप्त न रहने वाले कार्य को गुप्त ढंग से करने का प्रयास करना।
एक हाथस सूं ताळी कोनी बाजै — एक पक्षीय सक्रियता से कार्य पूरा नहीं होता।
एक बास में दो झोटा कोनी खटावै — एक ही स्थान पर दो समान वर्चस्व के प्रतिद्वंद्वी नहीं रह सकते है।
कसूबळो टाबर तिंवार नै रूसै — मूर्ख व्यक्ति शुभ वक्त का फायदा नहीं उठा सकता।
ऊंखळी मूं सिर दे दियो तो धीमड़ा स्यू के डरणों है — कठिन कार्य हाथ में लेने पर आने वाली कठिनाई से विचार न होना।
करले सो काम अर भजसे सो राम — समय पर जो कार्य कर लिया जाये वही अपना है।
काणती रै ब्याव में सौ कातक — किसी दोष से युक्त होने पर कठिनाइयां आती ही आती ही आती है।
दिल्ली में किसा भड़भुंजा कोनी रेवै — अपवाद तो सभी जगह होते हैं।
लंगड़ी गधी अर लाहौर रो भाडो — अयोग्य द्वारा अधिक की मांग।
कोयलै री दळाली में हाथ काळ — बुरे कार्य से जुड़ने पर बुराई मिलती है।
किरळे नै देखर किळे रंग बदलै — एक को देखकर दूसरे में परिवर्तन आता है।
गुड़ खावै अर गुलगुलां सूं परहेज — बनावटी परहेज।
गुड़ दियां मर जावे जरह देवै ई क्यूं — यदि शांति पूर्वक ही कोई कार्य हो जाये तो कठोर व्यवहार की आवश्यकता नहीं।
चंदन की चुटकी भली गाडो भला न काट — उपयुक्त गुण वाली वस्तु थोड़ी सी भी अच्छी है और अधिक मात्रा में अनुपयुक्त वस्तु भी निरर्थक है।
चमड़ी जा पर दमड़ी न जा — अत्यधिक कंजूस।
चिकणै घड़ै पर पाणी कोनी ठैरै — बेशर्म पर कोई असर नहीं होता।
चोपड़ेड़ी अर दो दो — अच्छी चीज ओर वह भी बहुतायत में।
चोर चोर मौसेरा भाई — दुष्ट प्रवृति के लोग अपने जैसों को खूद ही ढूंढ लेते हैं।
दुनिया किसी के आप जिसी — खुद की सोच जैसे लोग।
चोरी रो माल मोरी में — गलत ढंग से कमाया धन यूं ही बर्बाद हो जाता है।
जिसो देश बिसो भेष — स्थान एवं अवसर के अनुसार व्यवहार करना।
झूठ रे पग कोनी होवै — झूठ अधिक दिन तक नहीं चल सकती।
थोथो चणों बाजै घणौं — अकर्मण्य बातें अधिक बनाता है
होठी पाछै घाघरो मार खसम रै सिर में — उपयुक्त अवसर निकल जाने पर मांगपूर्ति निरर्थक।
घणी बहुवां है तो किसी बटाऊ लारै घालणनै — बहुतायत हाने का यह मतलब नहीं कि वह अनुपयोगी है।
घोड़ा री दौड़ में कनात्यां रो ई फरक रेवै — समकक्ष की हार – जीत में मामूली अंतर।
चिंडपड़ै सुहाग सूं रंडेपों ई चोखो — कष्टप्रद वस्तु की अपेक्षा उसका न होना ही ठीक है।
चाल ऐ छियां घड़ी अेक नै आऊं — अपने आप पर अत्यधिक घमण्ड होना।
चोरन नै कै लाग अर सहूकार नै कै जाग — दोनों तरफ भडकाना।
जांवतै चोर रा झींटा ही चोखा — कुछ न प्राप्त होने की अपेक्षा कुछ ना कुछ प्राप्त होना ही बेहतर है।
जिण री खावै बाजरी बिण री बजावै हाजरी — अपने मालिक के प्रति वफादार होना।
जिम्या पछै चळू होवै — कार्य सम्पन्न हो जाने के बाद कुछ नहीं किया जा सकता।
जेठ सारै बेटी को जाई नी — दूसरे के भरोसे कार्य नहीं करना
गई बात न घोड़ा ई को नावड़ै नी — समय निकलने के बाद कुछ नहीं किया जा सकता।
***