उदयपुर जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Udaipur District GK in Hindi / Udaipur Jila Darshan
उदयपुर जिले का कुल क्षेत्रफल – 13,419 वर्ग किलोमीटर
उदयपुर जिले की मानचित्र स्थिति – 23°46′ से 25°5′ उत्तरी अक्षांश तथा 73°9′ से 74°35′ पूर्वी देशान्तर है।
उदयपुर जिले में कुल वनक्षेत्र – 4581.23 वर्ग किलोमीटर
उदयपुर को मेवाड़ का रत्न, झीलों की नगरी, पूर्व का वेनिस, भारत का दूसरा कश्मीर तथा राजस्थान का कश्मीर आदि उपनामों से जाना जाता है।
उदयपुर का प्राचीन नाम—शिवी, मेदपाट तथा मेवाड़ के नाम से जाना जाता था।
उदयपुर की आकृति आस्ट्रेलिया के समान है तथा सम्पूर्ण उदयपुर संभाग की आकृति श्रीलंका के समान है।
उदयपुर का वह भाग जो पहाड़ी ढ़ालों से आच्छादित है भोमट प्रदेश कहलाता है।
देशहरो—उदयपुर में स्थित जरगा व रागा पहाड़ी के मध्य हमेशा वृक्ष हरे-भरे रहते हैं। अत: इसे देशहरो कहते हैं।
गिरवा—चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ उदयपुर का क्षेत्र गिरवा कहलाता है।
उदयपुर में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 8 है, जो निम्न है —
1. गोगुन्दा, 2. झाड़ोल, 3. खेरवाड़ा, 4. उदयपुर ग्रामीण, 5. उदयपुर, 6. मावली, 7. वल्लभ नगर तथा 8. सलूंबर
उपखण्डों की संख्या – 6
तहसीलों की संख्या – 9
पंचायत समितियों की संख्या – 11
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उदयपुर जिले की जनसंख्या के आंकड़ें निम्नानुसार है—
कुल जनसंख्या—30,68,420
पुरुष—15,66,801; स्त्री—15,01,619
दशकीय वृद्धि दर—23.7%; लिंगानुपात—958
जनसंख्या घनत्व—262; साक्षरता दर—61.8%
पुरुष साक्षरता—74.7%; महिला साक्षरता—48.4%
उदयपुर जिले में कुल पशुधन – 27,80,566 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
उदयपुर जिले में कुल पशु घनत्व – 207 (LIVESTOCK DENSITY(PER SQ. KM.))
उदयपुर जिले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि—
महाराणा उदयसिंह ने 1559 ई. में उदयपुर की स्थापना की। इससे पूर्व यह क्षेत्र मेवाड़ का ही भाग था। लगातार मुगलों के आक्रमणों में सुरक्षित स्थान पर राजधानी स्थानान्तरित किये जाने की योजना से इस नगर की स्थापना हुई।
सन् 1572 में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र प्रताप का राज्याभिषेक हुआ। उन दिनों एक मात्र यही ऐसे शासक थे जिन्होंने मुगलों की अधीनता नहीं स्वीकारी थी। महाराणा प्रताप एवं मुगल सम्राट अकबर के बीच हुआ हल्दीघाटी का घमासान युद्ध मातृभूमि की रक्षा के लिये इतिहास प्रसिद्ध है। यह युद्ध किसी धर्म, जाति अथवा सम्राज्य विस्तार की भावना से नहीं, बल्कि स्वाभिमान एवं मातृभूमि के गौरव की रक्षा के लिये ही हुआ।
देश के आजाद होने से पूर्व रियासती जमाने में गुहिल वंश के अंतिम शासक महाराणा भोपाल सिंह थे जो राजस्थान के एकीकरण के समय 30 मार्च, 1949 तक राज्य के महाराज प्रमुख रहे।
राजस्थान एकीकरण के तृतीय चरण में उदयपुर को शामिल किया गया तथा राजस्थान के राजप्रमुख उदयपुर महाराणा भूपाल सिंह बने। वर्तमान में उदयपुर संभाग है।
उदयपुर जिले में बहने वाली प्रमुख नदियाँ —
बेड़च नदी—बेड़च नदी का उद्गम उदयपुर में गोगुन्दा की पहाड़ियों से होता है। उदयसागर झील में गिरने से पहले इसे आयड़ एवम् बाद में बेड़च नदी कहलाती है। उदयपुर व भीलवाड़ा में बहने के पश्चात् यह नदी मांडलगढ़ के समीप बींगोद नामक स्थान पर बनास में मिल जाती है। बेड़च नदी की कुल लंबाई लगभग 157 किलोमीटर है। बेड़च नदी की प्रमुख सहायक नदियों में मेनाल, ओरई, गंभीरी तथा गुजरी प्रमुख है।
बेड़च नदी के किनारे प्राचीन आहड़ सभ्यता विकसित हुई थी, जिसे ताम्रयुगीन सभ्यता भी कहते हैं।
सोम नदी—सोम नदी का उद्गम उदयपुर में बीछामेड़ा की पहाड़ियों से होता है। यह नदी बेणेश्वर (डूंगरपुर) में माही नदी में मिल जाती है। इस नदी की प्रमुख सहायक नदियों में जाखम, टीडी, सारनी व गोमती है। सोम नदी उदयपुर और डूंगरपुर के बीच सीमा बनाती है।
साबरमती नदी—राजस्थान की एकमात्र ऐसी नदी जिसका उद्गम राजस्थान में जबकि गुजरात की प्रमुख नदी है। साबरमती का उद्गम उदयपुर में गोगुन्दा की पहाडिय़ों से होता है। राजस्थान में 45 किलोमीटर बहने के पश्चात् यह नदी गुजरात में बहते हुए खंभात की खाड़ी (अरब सागर) में गिरती है। इस नदी की कुल लम्बाई 416 किलोमीटर है। गुजरात में इस नदी में माजम, बेतरक और बाकल नदियां आकर मिल जाती है। साबरमती नदी के किनारे गुजरात का प्रसिद्ध शहर गांधीनगर बसा हुआ है।
सेई नदी—सेई नदी का उद्गम पादरना गाँव की पहाड़ियों (उदयपुर) से होता है। यह नदी राजस्थान में बहकर गुजरात में साबरमती नदी में मिल जाती है।
वाकल नदी—उदयपुर में गोरा गाँव की पहाड़ियों से उद्गम होता है। यह नदी भी साबरमती की सहायक नदी है।
झीलें उदयपुर में मीठे पानी की सर्वाधिक झीलें है—
जयसमन्द झील—इस झील का निर्माण महाराणा जयसिंह ने 1685-91 के मध्य गोमती नदी पर बाँध बनाकर किया। इसे ढ़ेबर झील भी कहते हैं। यह विश्व की दूसरी एवं राजस्थान की पहली सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। (नोट—विश्व एवं भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील गोविन्द सागर है)। जयसमंद झील किसी समय एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील थी, परन्तु गोविन्द सागर झील के निर्माण के बाद यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील हो गयी।
जयसमंद झील पर 7 टापू बने हैं। जिसमें सबसे बड़ा टापू ‘बाबा का भांगड़ा’ एवं सबसे छोटा टापू ‘प्यारी’ है।
पिछोला झील—इसका निर्माण महाराणा लाखा के काल में छीतर (पीच्छू) नामक बंजारे ने अपने बैल की स्मृति में करवाया। इस झील में सीसारमा व बूझड़ा नदियों से पानी आता है। इस झील में बीजारी नामक स्थान पर नटनी का चबूतरा है। नटनी का नाम – गलकी।
नटनी की संक्षिप्त कथा— 1746 में शासक जगतसिंह द्वितीय थे। नट जाती सामान्यतः रस्सी पर चलने का करतब दिखाती थी आज भी करती है महाराजा ने शर्त रखी जो स्त्री रस्सी के सहारे इस झील को पार करेगी उसे वो आधा राज्य दे देगा (या महारानी बनायेगा) तब गलकी नामक नटनी ने यह शर्त स्वीकार की तब महाराजा ने झील के दोनों तरफ के पहाड़ों पर रस्सी बंधवाई और उसे चलने को कहा जब इस नटनी ने आधी झील को पार कर लिया तो महाराजा को चिंता हुई की ये अगर महारानी बनेगी तो वंश का नाम खराब होगा तो उन्होंने सैनिको से कहकर रस्सी को कटवा दिया उस नटनी को तैरना नही आता था और उसकी डूबने से मृत्यु हो गई। गलकी नामक नटनी की याद में ही नटनी का चबूतरा बनवाया गया था।
फतेहसागर झील—1687 ई. में इस झील की नींव ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी। 1688 में इसका निर्माण जयसिंह ने करवाया। 1888 में महाराणा फतेहसिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। अत: इसे फतेहसागर झील कहते हैं।
स्वरूप सागर झील—इसका निर्माण 1857 में स्वरूप सिंह ने करवाया।
उदयसागर झील—इसका निर्माण महाराणा उदयसिंह ने (1559-65) में बेड़च नदी के पानी को रोककर करवाया।
उदयपुर राज्य के अन्य जलाशय—
सोम कागदर सिंचाई परियोजना—यह उदयपुर की खेरवाड़ा तहसील में सोम नदी पर निर्मित है।
सेई परियोजना—उदयपुर की कोटड़ा तहसील में निर्मित, इससे जवाई बाँध में पानी डाला जाता है।
देवास द्वितीय परियोजना—इसमें दो बाँध अकोदड़ा एवं मादड़ी में बनाए जाने प्रस्तावित है। इससे उदयपुर की झीलों को पानी उपलब्ध करवाया जाएगा।
मानसी वाकल परियोजना—गोराणा गाँव के समीप बाँध बनाया गया है जिससे पानी देवास बाँध तक लाया जाएगा इसके लिए 4.6 किलोमीटर लम्बी सुरंग बनाई गई है।
उदयपुर राज्य के वन्य जीव अभयारण—
सज्जनगढ़ वन्य जीव अभयारण—इसकी स्थापना-1987 में की गई। यह राजस्थान के सबसे छोटे अभयारणों में से एक है, जो केवल 5.19 वर्ग किमी. क्षेत्र में है। यहाँ राज्य का दूसरा जैविक उद्यान निर्माणाधीन है। (नोट—राज्य का प्रथम जैविक उद्यान नाहरगढ़-जयपुर में स्थित है)।
फुलवारी की नाल—इसकी स्थापना अक्टूबर 1983 में की गई थी। फुलवारी की नाल से मानसी व वाकल नदियों का उद्गम होता है। इस अभयारण में देश का प्रथम ह्यूमन एनोटोमी पार्क विकसित किया जा रहा है।
सज्जनगढ़ मृगवन—सज्जनगढ़ मृगवन की स्थापना 1984 में की गई थी। इस मृगवन में चीतल सर्वाधिक मिलते हैं।
उदयपुर जन्तुआलय—इसकी स्थापना महाराणा स्वरूप सिंह ने 1878 में गुलाब बाग में की। यह राज्य का दूसरा सबसे प्राचीन जन्तुआलय है। (पहला-जयपुर-1876)
उदयपुर जिले के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल—
सज्जनगढ़ का किला—इसे उदयपुर का मुकुटमणि कहते हैं। इस दुर्ग का निर्माण सज्जन सिंह ने ज्योतिष की गणना करने के लिए बासंदरा की पहाड़ी पर करवाया। इस दुर्ग को मानसून निवास व शिकारगृह के रूप में बदला गया। यह वर्तमान में पुलिस का वायरलेस केन्द्र बना हुआ है। इसमें सज्जनसिंह ने सज्जनगढ़ पैलेस (वाणी विलास) एवं गुलाब बाग (गुलाब बाड़ी) का निर्माण 1881 ई. में करवाया। यह दुर्ग गुलाब के आकार के लिए प्रसिद्ध है।
एकलिंग जी का मंदिर—यह मंदिर कैलाशपुरी (उदयपुर) में स्थित है। एकलिंग नाथ जी मेवाड़ के महाराणाओं के ईष्टदेव तथा कुल देवता है। इसका निर्माण 8वीं सदी में बप्पा रावल ने करवाया, जिसको रायमल ने वर्तमान स्वरूप दिया। यह मंदिर राज्य में पाशुपत सम्प्रदाय का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर में शिव की चौमुखी मूर्ति प्रतिमा है जिसमें पूर्व के मुख में सूर्य, उत्तर के मुख में ब्रह्मा, दक्षिण के मुख में शिव तथा पश्चिम के मुख में विष्णु के दृश्य है। इस मन्दिर के पास लकुलीश मंदिर है।
नोट—मेवाड़ के महाराणा एकलिंगनाथ जी के मंदिर में हथियार लेकर नहीं जाते थे, केवल छड़ी लेकर जाते थे। क्योंकि मेवाड़ के महाराणा एकलिंगनाथ जी को शासक तथा स्वयं को उनका दीवान मानते थे।
आमजा माता—रींछड़े (केलवाड़ा, उदयपुर) भीलों की कुल देवी, इस माता की पूजा एक भील भोपा व एक ब्राह्मण पुजारी करता है। माता का मेला ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को भरता है।
अम्बिका माता—अम्बिका माता का मंदिर जगत (उदयपुर) में स्थित है। इसे मेवाड़ का खजुराहो का कहा जाता है।
अम्बेमाता—यह भी उदयपुर जिले में स्थित है।
विष्णु मन्दिर—यह जावर, उदयपुर में स्थित है। इसका निर्माण कुम्भा की पुत्री रमाबाई/ वागीश्वरी ने ईश्वर नामक सूत्रधार की सहायता से पंचायतन शैली में करवाया। इस मंदिर में रमाकुण्ड है।
सास-बहु का मंदिर—यह मंदिर नागदा (उदयपुर) में स्थित है। इस मन्दिर को ”सहस्त्र बाहु” तथा ”अद्भूत मंदिर” भी कहा जाता है। ये विष्णु को समर्पित दो मंदिर है जिसमें सास का मंदिर का बड़ा तथा बहु का मन्दिर छोटा है। यह मूलत: ”सहस्रबाहु” का ही मंदिर है, जो लोक भाषा में सास-बहु के मंदिर के नाम से विख्यात हो गया।
जगदीश जी का मंदिर—इसका निर्माण जगत सिंह प्रथम ने अर्जुन की निगरानी में सूत्रधार भाणा व उसके पुत्र मुकुन्द की सहायता से 1651 में सिटी पैलेस के समीप करवाया। इसे सपने में बना मंदिर भी कहते हैं। यहाँ पर जगदीश जी की 5 फीट की काले पत्थर की प्रतिमा शर्वा (डूँगरपुर) से पीपल वृक्ष के नीचे से लाई गई थी। इस मंदिर के गर्भगृह में गरुड़ की प्रतिमा है। इस गरुड़ प्रतिमा को एशिया की सर्वश्रेष्ठ गरुड़ प्रतिमा माना जाता है। इस मंदिर को औरंगजेब से बचाने के लिए नारु जी बारहठ ने प्राण त्यागे थे।
धाय माँ का मन्दिर—जगदीश मंदिर के समीप इस मंदिर का निर्माण महाराणा जगतसिंह की धाय नौजूबाई द्वारा करवाया गया। इस मंदिर के चारों कोनों में पार्वती, गणेश, सूर्य एवं देवी के मन्दिर हैं।
स्कन्ध कार्तिकेय मन्दिर—तनेसर (उदयपुर) यह मन्दिर देवसेना के अधिपति स्कन्ध व शिवजी के पुत्र कार्तिकेय स्वामी का मन्दिर है।
गुप्तेश्वर मंदिर—हाड़ा पर्वत (उदयपुर)। इस मन्दिर को ”गिरवा व मेवाड़ का अमरनाथ” कहते हैं।
मच्छन्दरनाथ मन्दिर इसे शैय्या मन्दिर भी कहते हैं। यह सांझी निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।
केसरियानाथ जी का मन्दिर—धुलेव गाँव (उदयपुर) इन्हें कालाजी / ऋषभदेवजी/ आदिनाथ जी आदि नामों से पुकारते हैं। यहाँ पर मेला कोयल नदी के किनारे चैत्र कृष्ण अष्टमी को भरता है। इनकी पूजा केसर से की जाती है। भील इन्हें कालाजी कहते हैं। यहाँ पर ऋषभेदव जी की 3 फीट की काली चमकीली प्रतिमा हैं। भील कालाजी की आण को सर्वोपरि मानते हैं। वैष्णव धर्म के लोग इसे विष्णु का अवतार मानते है। यह मन्दिर बिना किसी चूने के जोड़ के 1100 खम्भों पर टिका है।
उदयपुर में स्थित महापुरुषों की छतरियाँ—
महाराणा प्रताप की छतरी—बाण्डोली (उदयपुर) महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी का निर्माण महाराणा अमरसिंह ने केजड़ बाँध पर करवाया था।
गफूर बाबा की छतरी—इसका निर्माण जगमंदिर के पास शाहजहाँ ने करवाया।
सिसोदिया वंश की छतरियाँ—आहड़, उदयपुर। यहाँ की प्रथम छतरी महाराणा अमरसिंह की है।
उदयुपर के अन्य महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरें एवं स्थल—
उदयपुर की हवेलियाँ—बागौर की हवेली, पीपलिया की हवेली, बाफना की हवेली, मोहन सिंह की हवेली।
नाथ प्रशस्ति—एकलिंग जी, कैलाशपुरी, (उदयपुर)-971 ई. इसकी भाषा संस्कृत व लिपि देवनागरी है।
सारणेश्वर/सांडनाथ प्रशस्ति—आहड़ (उदयपुर) 953 ई.।
अपराजित का शिलालेख—नागदा, उदयपुर (661 ई.)। डॉ. ओझा को यह लेख कुण्डेश्वर मंदिर में मिला जिसको ओझा ने उदयपुर के विक्टोरिया हॉल संग्रहालय में रखवाया।
शृंगी ऋषि शिलालेख—कैलाशपुरी, उदयपुर-1428 ई. इसकी रचना राजवाणी विलास ने की, यह लेख मोकल के समय का है।
वैद्यनाथ मन्दिर प्रशस्ति— उदयपुर-1719 ई.। यह पिछोला झील के समीप है। इसकी रचना रूपभट्ट ने की। इसके अनुसार हारित ऋषि के आशीर्वाद से बप्पारावल ने मेवाड़ राज्य प्राप्त किया।
उदयपुर में स्थित प्राचीन सभ्यता—
आहड़ सभ्यता—इसकी खोज अक्षयकीर्ति व्यास ने 1953 ई. में की तथा उत्खनन कार्य-रतनचन्द्र अग्रवाल के नेतृत्व में 1955-56 ई. में तथा धीरज लाल सांकलिया के नेतृत्व में 1961 में किया गया।
आहड़ सभ्यता 1800 से 1200 ई. पूर्व की मानी जाती है। आहड़ का प्राचीन नाम-धूलकोट है जिसका अर्थ होता है—रेत का टीला। इसे ताम्रयुगीन सभ्यता कहते है। यहाँ से एक साथ छ: चूल्हों के अवशेष मिले हैं।
आहड़ सभ्यता से 6 ताम्र मुद्राएँ व 3 मुहरें मिली है एक मुद्रा के एक तरफ त्रिशूल अंकित है तथा दूसरी ओर ग्रीक देवता अपोलो को खड़ा दिखाया है।
बालाथल सभ्यता- इस सभ्यता की खोज बी.एन. मिश्र के द्वारा 1993 ई. में की गई।
ईसवाल-उदयपुर से लौहयुगीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
उदयपुर जिले के महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्व —
लोहा—नाथरा की पाल (उदयपुर)
ताँबा—अंजनी, सलूम्बर (उदयपुर)। जावर क्षेत्र मोचिया मगरा की खान से सर्वाधिक।
मैंगनीज—नेगड़िया, रामोसन (उदयपुर-राज्य में द्वितीय स्थान, प्रथम-बाँसवाड़ा)
बेरीलियम—शिकारबाड़ी, सिलेका (उदयपुर)।
अभ्रक—भगतपुरा, चम्पागुढ़ा (उदयपुर)
यूरेनियम—उमरा (राज्य में सर्वाधिक)
एस्बेस्टॉस—सलूम्बर, ऋषभदेव, खेरवाड़ा (राज्य में सर्वाधिक)
चूना पत्थर—रायलोक्रम (उदयपुर)
पन्ना—गोगुन्दा, कालागुमान। राज्य में सर्वाधिक (नोट-पन्नामण्डी -जयपुर)
रॉक फास्फेट-झामरकोटड़ा (राज्य में सर्वाधिक)
संगमरमर—ऋषभेदव, मसारों की ओबरी से हरा संगमरमर जबकि देवी माता, केवड़ा-बाबर भात से गुलाबी संगमरमर मिलता है।
उदयपुर जिले में कला एवं संस्कृति—
राज्य का पहला शिल्पग्राम-हवालाग्राम-1989 में ।
पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र-उदयपुर-1986 में।
राजस्थान साहित्य अकादमी-उदयपुर-1958 में।
भारतीय लोक कला मण्डल-उदयपुर में 1952 में स्थापित। इसकी स्थापना देवी लाल सामर ने की इस संस्थान के द्वारा कठपुतली कला का विकास व संवर्धन किया जाता है।
लकड़ी के खिलौने, जिंक के खिलौने, कलात्मक कठपुतलियाँ उदयपुर की प्रसिद्ध है।
राजस्थानी चित्रकला की मूल व सबसे प्राचीन शैली उदयपुर शैली है।
जगत सिंह प्रथम ने राजमहल में ‘चितेरों की ओवरी’ (तस्वीरां रो कारखानों) नाम से चित्रकला का विद्यालय खोला।
साहिबद्दीन का चित्रित ग्रन्थ—रागमाला उदयपुर शैली का प्रसिद्ध है।
राज्य में पहली बार ताम्र पत्र पर चित्रित प्रथम उपलब्ध ग्रन्थ ”श्रावक-प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी” है जो आहड़ (उदयपुर) में तेजसिंह के शासन काल में चित्रित हुआ था।
घोसुण्डा—हाथ से बने कागज के लिए प्रसिद्ध है।
बागौर की हवेली में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी रखी हुई है।
उदयपुर जिले के सामान्य ज्ञान संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य —
उदयपुर की झीलों में साबरमती नदी का पानी डालने के लिए देवास सुरंग बनाई। इसकी लम्बाई 11.5 किमी. है। यह राज्य की सबसे लम्बी सुरंग है।
पिछोला झील में जगमंदिर (जगत सिंह प्रथम द्वारा) एवं जगनिवास (जगत सिंह द्वितीय द्वारा) का निर्माण करवाया।
पिछोला झील में देश की पहली सौर ऊर्जा से चलित नाव चलाई गई।
सिटी पैलेस/राजमहल—इसका निर्माण उदयसिंह ने पिछौला झील के किनारे करवाया इसकी तुलना फर्ग्यूसन ने लंदन के विण्डसर महलों से की है।
सहेलियों की बाड़ी उद्यान—फतेहसागर झील के समीप इस उद्यान का निर्माण संग्राम सिंह द्वितीय ने करवाया
फतेहसागर झील में देश की पहली सौर वैधशाला अहमदाबाद संस्थान द्वारा 1975 में स्थापित की गई।
नेहरु उद्यान—फतेहसागर झील के टापू पर बना है।
राज्य में उदयपुर जिले से सर्वाधिक नदियों का उद्गम होता है।
वन अनुसंधान केन्द्र—सीसारमा, उदयपुर में स्थित है।
ज्वार अनुसंधान केन्द्र—वल्लभ नगर, उदयपुर-1970
केन्द्रीय भैंस प्रजनन एवं अनुसंधान केन्द्र—वल्लभनगर (उदयपुर)
राज्य में एकमात्र दुग्ध विज्ञान विश्वविद्यालय-उदयपुर।
राजस्थान का पहला केप्टिव पावर प्लान्ट (बायोमास पर आधारित) झामर कोटड़ा उदयपुर में 2001 को बनाया।
बायोमास गैस का सर्वाधिक उत्पादन-उदयपुर।
हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड—देबारी उदयपुर स्थापना-10 जनवरी, 1966 को कच्चे जस्ते से शुद्ध जस्ता बनाने हेतु इसकी स्थापना की गई।
शमा फास्फेट उर्वरक उद्योग-लकड़वासा (उदयपुर)।
महाराणा प्रताप हवाई अड्डा-डबोक (उदयपुर)।
मेवाड़ महोत्सव-उदयपुर में अप्रैल माह में मनाया जाता है।
मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय-उदयपुर स्थापना-1964 में उदयपुर संग्रहालय के नाम से तथा 1982 में इसका नाम बदलकर मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय रखा गया।
राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (SIERT) की स्थापना 1978 में उदयपुर में की गई।
महाराणा प्रताप स्मारक—मोती मगरी, उदयपुर
हल्दीघाटी युद्ध में घायल प्रताप ने अपना इलाज कौल्यारी (उदयपुर) में करवाया।
आजीविका मिशन का पहला सेंटर उदयपुर में खोला गया।
राजस्थान में डाकन प्रथा पर सर्वप्रथम रोक उदयपुर में लगाई गई।
कमल की खेती सलूम्बर (उदयपुर) के तालाब में होती है।
जनाना और मर्दाना महल-सलूम्बर (उदयपुर)
महाराणा प्रताप ने चावण्ड (उदयपुर) को अपनी राजधानी बनाया यही पर 19-1-1597 को प्रताप की मृत्यु हुई।
भारत के प्रथम मार्शल आर्ट विश्वविद्यालय की स्थापना उदयपुर में की गई।