Introduction of Art & Culture in Rajasthan

राजस्थान के सन्दर्भ में कला एवं संस्कृति का परिचय

(Introduction of Art & Culture in Rajasthan)

संस्कृति से तात्पर्य उन सिद्धान्तों से है जो समाज में एक निश्चित प्रकार का जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते हैं। अत: के. एम. मुन्शी के अनुसार, हमारे रहन-सहन के पीछे जो मानसिक अवस्था, मानसिक प्रवृत्ति है, जिसका उद्देश्‍य हमारे जीवन को परिष्कृत, शुद्ध और पवित्र बनाना है तथा अपने लक्ष्य की प्राप्ति करना है, वही संस्कृति है।

संस्कृति के आन्तरिक और बाह्य दो पक्ष होते हैं। आन्तरिक संस्कृति के उपकरण हमारे चारित्रिक गुण हैं। जैसे शरणागत की रक्षा (रणथम्भोर के राव हम्मीर ने दो शरणागत मुसलमानों (मीर मुहम्मद शाह और कामरू) की रक्षा के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था), धर्म की महत्वता, अतिथि सत्कार, व्यावसायिक ईमानदारी, पारस्परिक सहयोग की भावना अबलाओं की रक्षा एवं असहायों की रक्षा। बाह्य संस्कृ‍ति के उपादान बहुत विस्तृत हैं जैसे, चित्र, नृत्य , स्थापत्य, मूर्ति निर्माण, संगीत, लोकसाहित्य, धार्मिक मेले उत्सव आदि।

कला मानव संस्कृति की उपज है। इसका उदय मानव की सौन्दर्य भावना का परिचायक है। इस सौन्दर्य भावना की वृत्ति व मानसिक विकास के लिये ही विभिन्न कलाओं का विकास हुआ है। कला का शाब्दिक अर्थ है किसी वस्तु का छोटा अंश। कला धातु से ध्वनि व शब्द का बोध होता है। ध्वनि से आशय है – अव्यक्त से व्यक्त की ओर उन्मुख होना। कलाकार भी अपने अव्यक्त भावों को विभिन्न माध्यमों से व्यक्त‍ करता है।

राजस्थान में अपनी अनूठी कला संस्कृति और वास्तुकला का एक समृद्ध विरासत है। इनमें से कई कला रूपों का अस्तित्व युगों से है और राजस्थान की वर्तमान संस्कृति का भी हिस्सा है। राजस्थान की स्थापत्य कला विश्व प्रसिद्ध है, राज्य के भूगोल में मौजूद किलों, महलों, हवेली, कब्रों, श्लोक और मूर्तियां, कई वंशों के मिश्रण को प्रकट करते हैं, जो प्राचीन भूमि पर शासन करते थे। राजस्थान के शानदार आभूषण और आकर्षक हस्तशिल्प ने दुनिया भर के लोगों की कल्पना को पकड़ लिया है।

राजस्थान में परम्परागत संगीत और नृत्य रूपों की अनौखी परंपरा है। जैसलमेर के कालबेलिया नृत्य और उदयपुर से घूमर नृत्य ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त की है। लोक संगीत राजस्थानी संस्कृति का अभिन्न अंग है। बल्ला, भोपा वीर कर्मों, लोक गीतों के माध्यम से प्रेम कहानियों से संबंधित हैं। लोक संगीत उपकरणों के साथ भजन और वाणियां इसे अलग स्वाद देते हैं।

राजस्थान वस्त्र, अर्ध कीमती पत्थर का काम और इसके पारंपरिक और रंगीन हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान अपनी अद्वितीय चित्रकारी के चित्रकला स्कूल के साथ लघु चित्रकारी कला के लिए एक सांस्कृतिक केंद्र है। राजस्थान में चित्रकला की शैलियां प्रचलित है, जैसे मेवाड़, मारवाड़, हाड़ोती, ढुंढाड़, किशनगढ़, बूंदी, कोटा और भी कई शैलियों के साथ यह विविधतापूर्ण चित्रकारी को समेटे हुये है।

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