भारतीय इतिहास के धार्मिक(साहित्यिक) स्रोत
साहित्यिक स्त्रोतो को दो भागों में बाँटा जा सकता है—
1. धार्मिक साहित्य 2. ऐतिहासिक साहित्य
धार्मिक साहित्य में हिन्दू धर्म से संबंधित वेद, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण ग्रंथ, स्मृति, पुराण और महाकाव्य, बौद्ध धर्म से संबंधित जातक, त्रिपिटक, पाली ग्रंथ व संस्कृत ग्रंथ जैन धर्म से संबंधित विभिन्न प्राकृत भाषा में लिखे गये ग्रंथ शामिल है जिन्हें ‘आगम’ कहा जाता है।
ऐतिहासिक ग्रंथों में अर्थशास्त्र, इण्डिका, राजतंरगिणी इत्यादि के अलावा विभिन्न तत्कालीन कवियों व विद्वानों यथा-कालिदास, शुद्रक, विशाखदत्त, नागार्जुन, आर्यभट्ट, वराहमिहिर ब्रह्मगुप्त इत्यादि के ग्रंथ शामिल हैं।
I. वेद
- भारतीय प्राचीनतम साहित्य वेद को माना जाता है। जिसकी उत्पत्ति ‘विद्’ धातु से हुई है जिसका अर्थ ज्ञान होता है।
- समस्त वेद श्रवण परम्परा पर आधारित होने के कारण श्रुति साहित्य के नाम से जाने जाते हैं और कालांतर में लिपिबद्ध होने के कारण ये संहिता कहलाये।
- प्रारंभिक वेद ऋग्वेद, सामवेद व यजुर्वेद है जबकि नवीनतम वेद अर्थववेद को माना जाता है।
चारों वेद निम्न हैं—
1. ऋग्वेद
- ऋग्वेद की उत्पत्ति ‘ऋक्’ शब्द से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ छंद से युक्त मंत्र होता है।
- ऋग्वेद में 1028 सूक्त हैं व 10 मण्डल है एवं 10,462 ऋचाएँ हैं।
- प्रथम व अंतिम मण्डल बाद में जोड़े गये है।
- ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है जबकि ब्राह्मण ग्रंथ कौषितिकी व ऐतरेय है।
- ऋग्वेद के पुरोहित को ‘होतृ’ कहा जाता है।
2. यजुर्वेद
- यजुर्वेद की उत्पत्ति ‘यजु’ शब्द से हुई है तथा इसका शाब्दिक अर्थ यज्ञ होता है इसमें यज्ञों से संबंधित विधि-विधानों का संकलन है।
- यह एकमात्र वेद है जो गद्य-पद्य दोनों शैलियों में लिखा है।
- इसके दो भाग है—कृष्ण यजुर्वेद व शुक्ल यजुर्वेद
- यजुर्वेद के पुरोहित को अध्र्वयु कहा जाता है।
3. सामवेद
- सामवेद की उत्पत्ति ‘साम’ शब्द से हुयी है इसका शाब्दिक अर्थ गान होता है। इसमें ऋग्वेद से लिये गये मंत्रों का उच्चारण लयबद्ध रूप से किया जाता है।
- इसलिए सामवेद को ‘भारतीय संगीत का मूल’ कहा जाता है।
- इसके कुल 1810 मंत्रों में से 75 को छोड़कर शेष मंत्र ऋग्वेद से लिये हैं।
- इसके पुरोहित को ‘उद्गाता’ कहा जाता है।
4. अर्थववेद
- अर्थववेद का प्रथम वाचन अथर्वा ऋषि व दूसरा वाचन उनके पुत्र अंगीरस ने किया इसलिए अर्थववेद को ‘अथर्वांगीरस’ भी कहा जाता है।
- इस वेद को ‘ब्रह्मवेद’ भी कहा गया है।
- चिकित्सा संबंधी क्रिया होने के कारण इस वेद को भीषज भी कहा गया है।
- महिवेद व ‘छंदोवेद’ भी ‘अर्थववेद’ को कहा गया है।
- यह प्रथम धार्मिक ग्रंथ है जिसमें अंधविश्वास, भूतप्रेत व जादू-टोना वर्णित है।
- इस वेद के पुरोहित को ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है।
II. ब्राह्मण गंथ
- ब्राह्मण की उत्पत्ति ‘ब्रह्म’ से हुयी है जिसका शाब्दिक अर्थ यज्ञ होता है। इसलिए यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथ कहलाये।
- दूसरे शब्दों में वे ग्रंथ जिनमें वेदों के अर्थ लिखे हुए है वे ब्राह्मण ग्रंथ के नाम से जाने जाते हैं। इसलिए प्रत्येक वेद के अलग-अलग ब्राह्मण ग्रंथ है जो निम्न है—
वेद ब्राह्मण ग्रंथ
ऋग्वेद — कौषितिकी व ऐतरेय
यजुर्वेद — शतपथ व तैत्तरेय
सामवेद — जैमिनी व पंचविश, षडविश, अद्भूत, तांड्य
अर्थववेद — गोपथ
III. आरण्यक
- वे ग्रंथ जो ऋषियों द्वारा जंगल में एकांत में बैठकर लिखे गये, इसलिए इन्हें आरण्यक कहा गया।
- ये ब्राह्मण ग्रंथों के अंतिम भाग माने जाते हैं। जिसमें दार्शनिक व रहस्यात्मक विषयों का वर्णन है।
- आरण्यक ग्रंथों की कुल संख्या 7 है।
- विभिन्न वेदों के आरण्यक ग्रंथ निम्न हैं—
वेद आरण्यक
ऋग्वेद — ऐतरेय व कौषितिकी
यजुर्वेद — शुक्ल यजुर्वेद — वृहदारण्यक, कृष्ण यजुर्वेद, तैत्तरेय, मैत्रायणि
सामवेद — छन्दोग्य, जैमिनी
नोट:— उल्लेखनीय है अर्थववेद एकमात्र वेद है जिसका कोई आरण्य ग्रंथ नहीं है।
VI. उपनिषद्
- उपनिषद् का शाब्दिक अर्थ निष्ठापूर्वक निकट बैठना है।
- ये वैदिक साहित्य के अंतिम भाग है इसलिए इन्हें ‘वेदांत’ कहा जाता है।
- इनकी कुल संख्या 108 है जिनमें 12 मुख्य है।
- इनमें दार्शनिक विचारधारा होने के कारण ‘पराविद्या’ अर्थात् ‘अध्यात्मिक विद्या की जननी’ कहा जाता है।
- आत्मा, परमात्मा, मोक्ष व पुनर्जन्म की अवधारणा सबसे पहले उपनिषद् में ही मिलते हैं।
- सबसे बड़ा उपनिषद् वृहदारण्यक।
- सबसे छोटा उपनिषद् — माण्डूक्य।
- चारों वेदों के निम्न अलग-अलग मुख्य उपनिषद् है—
वेद उपनिषद्
ऋग्वेद — ऐतरेय व कौषितिकी
सामवेद — छान्दोग्य, जैमिनी व कैन
शुक्ल यजुर्वेद — वृहदारण्यक व ईश
कृष्ण यजुर्वेद — तैतरेय, मैत्रायणि, कठ, श्वेताश्वर
अर्थववेद — मुण्डक, माण्डूक्य व प्रश्न
V. स्मृति साहित्य
- मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन के विविध कार्यों के नियम व निषेधों का उल्लेख स्मृति में मिलता है।
- सबसे प्राचीन स्मृति मनुस्मृति एवं याज्ञवल्क्य स्मृति भी प्रसिद्ध स्मृति ग्रन्थ है।
VI. पुराण
- प्राचीन कथाओं का स्त्रोत पुराण है जिनकी संख्या 18 है।
- पुराणों के संकलनंकत्र्ता – लोमहर्ष व उनके पुत्र उग्रश्रवा
- पुराणों के मुख्य विषय – सर्ग (सृष्टि की उत्पत्ति), प्रतिसर्ग (सृष्टि का विनाश के पश्चात् पुन: सृष्टि) मनवंतर (चारों महायुग) वंश वंशचरित
- नोट:—उल्लेखनीय है कि स्मृति व पुराणों की रचना गुप्तकाल में हुई इसलिए धार्मिक दृष्टि से यह युग स्मृतिकाल नाम से भी जाना जाता है।
VII. महाकाव्य
- महाकाव्य साहित्य में रामायण को आदिकाव्य माना जाता है। जिसकी रचना 500 ई.पू. वाल्मीकि ने की। महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहते है।
- दूसरा महाकाव्य महाभारत है जिसकी रचना 400 ई.पू. में कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने की।
- महाभारत का सर्वप्रथम उल्लेख—आश्वालायन सूत्र में मिलता है।
- महाभारत को—’इतिहास पुराण’ भी कहा जाता है।
- इसमें प्रारंभ में 8800 श्लोक थे बाद में 1 लाख श्लोक हाने के कारण इसे ‘शतसहस्त्रसंहिता’ भी कहा जाता है।
VIII. बौद्ध ग्रंथ
- बौद्ध ग्रंथ चार प्रकार के हैं—
1. जातक ग्रंथ 2. त्रिपिटक
3. पाली ग्रंथ 4. संस्कृत ग्रंथ
- बौद्ध साहित्य पाली भाषा में रचित है और बौद्धों का प्रामणिक ग्रंथ ‘विशुद्धमग्ग’ है।
- बौद्धों के धार्मिक सिद्धान्त—पिटक ग्रंथ में वर्णित है।
- पिटक का शाब्दिक अर्थ—’पिटारा’ या ‘टोकरी’ और इनकी संख्या तीन होने के कारण इन्हें त्रिपिटक कहा जाता है—
- विनय पिटक—दैनिक जीवन संबंधित नियम
- सुत्त पिटक—महात्मा बुद्ध के धार्मिक विचार (बौद्धधर्म का एनसाइक्लोपिडिया)
- अभिधम्म पिटक—बौद्ध धर्म की दार्शनिक शिक्षाओं का संग्रह
- जातक कथाओं में बुद्ध के पूर्व जन्म में संबंधित 500 कथाओं का वर्णन है।
नोट:—जातक कथा सुत्त पिटक के खुद्दक निकाय में वर्णित है। मिलिन्दपन्हो, द्वीपवंश, महावंश पाली भाषा के ग्रंथ है।
- मिलिन्दपन्हो में यूनानी शासक मिलेन्डर व बौद्ध भिक्षु नागसेन के धार्मिक वार्तालाप का उल्लेख मिलता है।
- द्वीपवंश से श्रीलंका के इतिहास की जानकारी मिलती है।
- ‘ललितविस्तार’ संस्कृत भाषा का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
- अंगुत्तर निकाय वह बौद्ध ग्रंथ है जिसमें 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
- अश्वघोष ने ‘बुद्धचरित’ व ‘सौदरानंद’ नामक ग्रंथ लिखे थे।
IX. जैन–साहित्य
- जैन साहित्य को आगम के नाम से जाना जाता है।
- प्राचीनतम जैन साहित्य प्राकृत भाषा में रचित है
- आगम का शाब्दिक अर्थ—पवित्र होता है।
नोट:—उल्लेखनीय है आगम ग्रंथों में श्वेताम्बर विश्वास करते है जबकि दिगम्बर 19 पर्वों में विश्वास करते है।
- जैन ग्रंथों का संकलन 300 ई.पू. बल्लभी (गुजरात) में किया।
- जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास भदबाहुकृत कल्पसूत्र से प्राप्त होता है।
- जैन धर्म का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हेमचन्द्र कृत ‘परिशिष्टपरवन’ है जिसका अन्य नाम ‘त्रिषष्ठी श्लाकापुरुषचरितम्’ है।
- परिशिष्टपरवन में चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा स्वर्ण वेलगोला (कर्नाटक) में भद्रबाहु से मुलाकात करने का वर्णन है।
- रामायण के कथानक को आधार मानकर लिखा गया प्रथम जैन ग्रंथ विमल सूरी का ‘पद्मचरित’ है।
- मेरूतुं की ‘प्रबन्ध चितामणी’ प्रथम राजनीतिक जैन ग्रंथ है। जो अर्थशास्त्र की टीका मानी जाती है।
X. वेदांग: वेदांग छ: है—
1. शिक्षा — नासिका
2. कल्प — हाथ
3. व्याकरण — मुख
4. निरूक्त — कान
5. छंद — पैर
6. ज्योतिष — आँखें
XI. सूत्र: सूत्र तीन है—
1. श्रोत सूत्र— यज्ञ संबंधी नियम
2. गृह सूत्र— लौकिक व परलौकिक कत्र्तव्यों का वर्णन
3. धर्म सूत्र— राजनीतिक, धार्मिक आर्थिक व सामाजिक कत्र्तव्यों का वर्णन।
नोट:—उल्लेखनीय है धर्मसूत्र ग्रंथों से ही स्मृति ग्रंथों का विकास हुआ।
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